🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*~ षष्ठ बिन्दु ~*
*= काजी का मुष्टि प्रहार =*
.
दादूजी के उक्त वचन सुनकर काजी का क्रोध और भी अधिक बढ़ गया । उसने फिर दादूजी के गाल पर जोर से एक मुक्का मारा । संत दादूजी महान् सहनशील थे, सहन कर गये । उसका मुक्का खाकर भी उस पर क्रोध नहीं किया और बोले - भैया तुमको मेरे शरीर पर चोट मारने से प्रसन्नता होती है तो इस दूसरे गाल पर भी मार सकते हो ।
.
वह तो दुर्जन था ही, उसने दूसरे गाल पर मारने को भी हाथ ऊँचा किया । तब उसका हाथ ऊपर ही रह गया, नीचा नहीं उतरा और हाथ में भयंकर वेदना भी हो गई । तब दादूजी ने कहा - भैया ! मेरा शरीर अति कठोर है, इससे हाथ में चोट आ गई है, उसी से दर्द हो गया है ।
.
तुम धीरे से मारते तो तुम्हारे हाथ में चोट नहीं आती किन्तु तुमने बहुत जोर से मारा है, इसी से दर्द हो गया है । अच्छा अब दूसरे गाल के धीरे मारना, जिससे तुम्हारे हाथ में दर्द न हो । दादूजी के उक्त वचन सुनकर काजी अत्यन्त लज्जित हुआ । लोगों ने उस के इस काम को बहुत बुरा बताया । वह दूसरा मुक्का नहीं मार सका ।
.
तब दादूजी ने प्रभु का धन्यवाद करते हुये कहा -
"दादू राखण हारा एक तूं, मारण हार अनेक ।
दादू के दूजा नहीं, तूं, आपै ही देख ॥१॥
कोमल कठिन कठिन है कोमल, मूरख मरम न बूझे ।
आदि अंत विचार कर, दादू सब कुछ सूझे ॥२॥
हे प्रभो ! मेरे शरीर पर मारने वाले तो बहुत हैं किन्तु रक्षा करने वाले तो आप एक ही हैं । मेरे तो आप को छोड़ कर दूसरा आश्रय है ही नहीं, यह तो आप स्वयं ही देखते हैं । मूर्ख प्राणी जिसे कोमल(सुगम) समझते हैं वही कठिन हो जाता है । वे अज्ञानी इस रहस्य को नहीं जानते ।
.
जो विचारशील मनुष्य कार्य के आदि से उसके परिणाम तक विचार करते रहते हैं उनको सब ज्ञात हो जाता है कि अंत में क्या होगा, किन्तु विचार नहीं करते उनको दुःख ही होता है । इस काजी के दुःख का कारण भी इस का अविचार ही है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें