#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
ता कारण हत आतमा, झूठ कपट अहंकार ।
सो माटी मिल जायगा, बिसर्या सिरजनहार ॥
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
https://youtu.be/KgEPHSRvkYA
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साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी
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मौत के मुँह में पड़े हुए मनुष्य का भोगों की तृष्णा रखना वैसा ही है जैसा कालसर्प के मुँह में पड़े हुए मेंढक का मच्छरों की ओर झपटना । पता नहीं कब मौत आ जाये । इसलिए भोगों से मन हटाकर दिन-रात भगवान् में मन लगाना चाहिए । जब तक स्वास्थ्य अच्छा है तभी तक भजन में आसानी से मन लगाया जा सकता है । अस्वस्थ होने पर बिना अभ्यास के भगवान् का स्मरण होना भी कठिन हो जायेगा ।
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इसी से भक्त प्रार्थना करता है - 'श्रीकृष्ण ! मेरा यह मनरूपी राजहंस तुम्हारे चरणकमल रुपी पिंजरे में आज ही प्रवेश कर जाये । प्राण निकलते समय जब कफ-वात-पित्त से कंठ रुक जायेगा, इन्द्रियां अशक्त हो जाएँगी तब स्मरण तो दूर रहा, तुम्हारा नामोच्चारण भी नहीं हो सकेगा ।' अतएव अभी से मन को भगवान् में लगाना और जीभ से उनके नाम का जप आरम्भ कर देना चाहिए ।
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धन-ऐश्वर्य, कुटुम्ब-परिवार सभी क्षणभंगुर हैं । इनकी प्राप्ति में सुख तो है ही नहीं वरं दुःख ही बढ़ता है । संसार में ऐसा कोई भी विचारशील पुरुष नहीं है जो विवेक-बुद्धि से यह कह सकता हो कि इनमें से किसी से भी उसे कोई सुख मिला है । यहाँ की प्रत्येक स्थिति में विरोधी स्थिति वर्तमान है - सुख चाहते हैं मिलता है दुःख, स्वास्थ्य चाहते हैं तो आती है बीमारी, प्रकाश के पीछे अंधकार लगा है, जवानी के साथ बुढ़ापा सटा है, जीवन का विरोधी मरण सिर पर सवार है । यह तो मूर्खता है, जो हम विषयों में सुख मानकर दुर्लभ मानव जीवन को खो रहे हैं ।
परन्तु विचार कर देखिये, मनुष्य सचमुच इसी तरह अपने अमृत-से मानव-जीवन को विषय-विष बटोरने और चाटने में ही खो रहा है । इसी से उसे एक के बाद दूसरे - लगातार दुखों कि परम्परा में ही रहना पड़ता है । याद रखना चाहिए, यहाँ की कोई भी चीज़, कोई भी सम्बन्धी उसको दुखों से नहीं छुड़ा सकता । भगवान् का भजन ही एक ऐसी चीज़ है, जो मनुष्य को दुःख के सारे बन्धनों से छुड़ा सकता है । अतएव मन लगाकर खूब भजन कीजिये ।
बस रटते रहिये - हरी नाम का प्याला ॥
श्री कृष्ण हरी !!

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