#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू विरह अग्नि में जल गये,*
*मन के मैल विकार ।*
*दादू विरही पीव का, देखेगा दीदार ॥*
*विरह अग्नि में जल गये, मन के विषय विकार ।*
*ताथैं पंगुल ह्वै रह्या, दादू दर दीदार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार : @NP Pathak ~
[नित्य लीलालीन श्रध्येय “भाईजी” श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार]
शरणागती ....... भाग –९
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इसी प्रकार जब भगवान् का विरह जाग उठता हैं तब अंत:करण विशुद्ध हो जाता है | भगवान् की प्राप्ति दुर्लभ नहीं हैं अपितु भगवान् की प्राप्ति के लिए हृदय में संताप का जाग उठना ही दुर्लभ है | यह संताप जब जाग गया, हृदय में इस प्रकार की एक ज्वाला जब जग उठी, जो सारी कामनाओं को, सारी वासनाओं को, सारी स्पृहाओं को, सारी आकांक्षाओं को और सारी तृष्णाओं को सब प्रकार से निरस्त कर देगीं, खा जाएगी, जला देगी, तब अंत:करण अशुद्ध कहाँ रहेगा ?
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अंत:करण की अशुद्धि कोई चीज नहीं हैं यदि उसमें भगवत विरह की आग डाल गई जाये | कूड़े में आग डाल दी जाय तो कूड़ा कितनी देर रहेगा ? वही कूड़ा आग बन जायेगा | इसी तरह भगवत प्रेम प्राप्ति की, भगवत प्राप्ति की हृदय में आग जला देनी चाहिए | यही परम साधन हैं और यह आग जल सकती है |
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कैसे ? चैतन्य महाप्रभु जैसे, मीरा जैसी, अंडाल जैसी, श्री नरसी मेहता, जैसी और श्री गोपांगनाओं जैसी | इन महात्माओं के भावों को समझकर और उनका पदानुसरण करने से अपने-आप यह चीज हृदय में जग उठेगी और जागते ही, जागते इसका आभास आते ही ये मन के जितने भी पाप हैं, वे तिलमिला उठेंगे |
(क्रमशः)

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