रविवार, 1 मार्च 2015

= ३ =

卐 सत्यराम सा 卐
तुम हरि हिरदै हेत सौं, प्रगटहु परमानन्द ।
दादू देखै नैन भर, तब केता होइ आनन्द ॥
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साभार : नितिन सिंह ~

''ध्‍यान'' के अंतर्यात्रा पर जो भी चल पड़ता है वह अक्‍सर, अध्‍यात्‍म-जगत के गुह्म विज्ञान से बेहद आकर्षित हो जाता है ! इससे पहले कि उसके पैर पार्थिव शरीर की भूमि में दृढ़ता से जम जाएं, वह तीसरे-चौथे-पांचवें सूक्ष्‍म शरीरों की खोजबीन करने लगता है। सुदूर आकाश के ये रहस्‍यपूर्ण टिमटिमाते सितारे उसे बुलाने लगते है !
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हो सकता है अभी इसका पूरा राज विज्ञान की पकड़ में न आया हो, लेकिन इससे उसके यथार्थ में कोई फर्क नहीं पड़ता ! सत्‍य वैज्ञानिक खोजों पर निर्भर नहीं है !
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विज्ञान ने ''परमात्‍मा'' को पूरी तरह से इनकार किया और पदार्थ की खोज में डूब गया। और अब पदार्थ को खोजते-खोजते वैज्ञानिक पुन: ''परमात्‍मा'' से टकरा गया है ! क्‍योंकि पदार्थ को तोड़ते जाओं तो अंत में वह बचता ही नहीं ''ऊर्जा'' बन जाता है और वैज्ञानिक भौंचक्‍का होकर आस्‍तित्‍व के अज्ञेय सागर के किनारे खड़ा रह जाता है ! अच्‍छा होगा सभी ध्‍यानी और खोजी वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए तत्‍पर हों !..

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