रविवार, 1 मार्च 2015

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卐 सत्यराम सा 卐
साचा सतगुरु राम मिलावे, 
सब कुछ काया मांहि दिखावे ॥
काया माँ ही सिरजनहार, 
काया माँ ही ओंकार ।
काया माँ ही है आकाश, 
काया माँ ही धरती पास ॥
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नितिन सिंह ~
आज ''आत्मा'', ''परमात्मा'' और ''मन'' के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया जाता किन्तु वैशेषिक दर्शन का अध्ययन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि आत्मा, परमात्मा, मन इत्यादि को भी ताप, चुम्बकत्व, विद्युत, ध्वनि जैसे ही ऊर्जा के ही रूप ही होने चाहिए ! इस दिशा में अन्वेषण एवं शोध की अत्यन्त आवश्यकता है !
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इस ब्रह्माण्ड में पाए जाने वाले समस्त तत्व आश्चर्यजनक रूप से हमारे शरीर में भी पाए जाते हैं और यह तथ्य वैशेषिक दर्शन में बताए गए इस बात की पुष्ट है कि "द्रव्य की दो स्थितियाँ होती हैं - एक ''आणविक'' और दूसरी ''महत्‌'' !
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आणविक स्थिति ''सूक्ष्मतम'' है  तथा महत्‌ यानी ''विशाल व्रह्माण्ड'' !
ऐसा प्रतीत होता है, कि प्राचीन भारत के वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को ध्यान में रखकर अपने शरीर को ही प्रयोगशाला का रूप दिया रहा होगा और इस प्रकार से अपने शरीर का अध्ययन कर के समस्त ब्रह्माण्ड का अध्ययन करने का प्रयास किया रहा होगा !

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