मंगलवार, 31 मार्च 2015

= ८५ =

daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सिरजनहार के, केते नाम अनन्त ।*
*चित आवै सो लीजिये, यों साधु सुमरैं संत ॥*
*दादू जिन प्राण पिण्ड हमकौ दिया, अंतर सेवैं ताहि ।*
*जे आवै ओसण सिर, सोई नांव संवाहि ॥*
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साभार : @Pannalal Ranga ~

मौन : सत्य का द्वार
परमात्मा हमेशा मौन है। यह उसका सहज स्वभाव है। उसने कभी अपना नाम नहीं बताया। उसने कभी यह तक नहीं कहा कि उसका कोई नाम नहीं है। उसके सारे नाम ज्ञानियों और भक्तों द्वारा दिए गए नाम हैं। उसने कभी अपने परमात्मा होने का भी दावा नहीं किया। उसे बोलने की, दावा करने की और अपना अस्तित्व सिद्ध करने की कभी जरूरत नहीं पड़ती। जिसे ऐसा करना पड़े वह परमात्मा नहीं है।
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दावा अहंकार का, अज्ञान का, अशक्ति का लक्षण है। परमात्मा आख़िर क्यों दावा करे ? सत्य इतना विराट और इतना अनंत है कि उसे किसी भी तरह से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। अनंत को भला सीमा में कैसे बाँधा जा सकता है ? सत्य के इतने आयाम हैं कि किसी भी तरह से एक साथ वे सभी आयाम अभिव्यक्त नहीं हो सकते।
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उसे अभिव्यक्त करने की कोशिश करते ही उसके बहुत से अंतर्विरोध सामने आ जाते हैं और वास्तविक सत्य तिरोहित हो जाता है। ब्रह्माजी ने केवल ‘द’ का उच्चारण किया था और देवताओं ने उसका मतलब लगाया दान, दानवों ने मतलब लगाया दया और मनुष्यों ने मतलब लगाया दमन।

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