बुधवार, 4 मार्च 2015

*= निषेधाज्ञा पत्र के अंक बदलना =*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*~ षष्ठ बिन्दु ~*
*= निषेधाज्ञा पत्र के अंक बदलना =*
.
फिर वे दोनों भक्त दादूजी के आश्रम से बाहर आये, तब राजपुरुषों ने उनको पकड़ लिया और कचहरी ले गये । वहां के पदाधिकारी ने उनसे पूछा - तुम दादू के गये थे क्या ? दोनों ने कहा - हां गये थे । अधिकारी ने कहा - फिर पांच पांच सौ रूपये दंड दो ।
.
भक्तों ने कहा - वह निषेधाज्ञा दंड पत्र हमको दिखाओ, हम उसे देखकर के दंड देंगे । फिर पत्र दिखाया तो उसमें लिखा था -
"दादू के जोऊ नहिं जे हैं, सैका पांच रुपैया दे हैं ॥"
(जनगोपाल वि. २।१६)
.
पत्र के अंक बदले हुये देखकर राज कर्मचारी सिकदार आश्चर्य चकित होकर लज्जित हुआ ! फिर भक्तों ने कहा - दादूजी के हम दो ही व्यक्ति गये हैं, अन्य कोई भी नहीं गया है । अतः आपके आदेश पत्र के अनुसार संपूर्ण सांभर नगर के लोगों से दंड लीजिये और आप भी दीजिये । राज कोष में अच्छा धन संग्रह हो जायगा ।
.
फिर सिकदार ने फारसी में लिखे हुये 'निषेधाज्ञा दंड पत्र' को मंगवाकर पढ़ा, उसमें भी अंक बदले हुये ही मिले । तब सिकदार को निश्चय हो गया, संत तो सच्चे हैं उनमें कोई दोष नहीं है । ये ईर्ष्यालु लोग ही उनको बलात् दोषी बना रहे हैं । फिर दोनों भक्तों को छोड़ दिया और सिकदार दादूजी के पास गया, प्रणाम करके क्षमा याचना की ।
.
संत तो परम दयालु थे ही, सिकदार को अभय देते हुये कहा - प्रभु का भजन किया करो । फिर सिकदार दादूजी को अपना गुरु मानकर उनके उपदेश के अनुसार अपना जीवन बनाने लगा । इस घटना के पश्चात् सांभर की जनता में दादूजी के प्रति और भी अधिक श्रद्धा - भाव बढ़ा । सब परस्पर यह कहते हुये कि "दादूजी तो महान् संत और भगवत स्वरूप ही हैं ।"
.
दर्शनार्थ तथा सत्संगार्थ पहले से भी अधिक जाने लगे । इस प्रकार बहुत प्रतिष्ठा बढ़ने लगी तब पंडित ब्राह्मणों ने तो ईर्ष्या करना छोड़ दिया कारण, श्रीमान् भक्त लोग भी उन्हें उपालंभ देने लगे थे कि आप लोग संतों से ईर्ष्या करते हो यह ठीक नहीं है, यदि आप ऐसा करेंगे तो हम लोग आप लोगों से विशेष व्यवहार रखना भी छोड़ देंगे ।
.
इससे ब्राह्मण पंडितों ने तो प्रकट रूप से ईर्ष्या करना छोड़ दिया किंतु काजियों को पूर्व से भी अधिक ईर्ष्या सताने लगी । उन्हीं दिनों में एक अजमेर का काजी सांभर आया था उसने दादूजी की महिमा सुनी और वहां के काजियों की भावना भी सुनी । तब उसके मन में भी ईर्ष्या हुई । वह हाथ में किताब लेकर दादूजी के पास आया । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें