卐 सत्यराम सा 卐
शिर के साटै लीजिये, साहिब जी का नांव ।
खेलै शीश उतार कर, दादू मैं बलि जांव ॥
खेलै शीश उतार कर, अधर एक सौं आइ ।
दादू पावै प्रेम रस, सुख में रहै समाइ ॥
=======================
साभार : @Reading for ever
सम्मन तथा मूसन ~ आज हम सम्मन तथा मूसन तथा मूसन का जिक्र करते हैं । सम्मन पुत्र और मूसन बाप, राम नाम का जपते जाप ।
सम्मन और मूसन, पिता और पुत्र दोनों लाहौर शहर के बाहरी इलाके में शहर से थोड़ा दूर एक गाँव में रहते थे । बेहद गरीबी में जीवन गुज़ार रहे थे दोनों । दोनों मजदूरी किया करते थे । रोज़ कुआँ खोदना और पानी पीना, यही लिखा था दोनों के नसीब में ।
.
दोनों प्रभु के प्यार में भीगे हुए थे । दोनों गुरु भक्त थे, तथा गुरु अर्जुन देव जी के शिष्य थे । कभी कभी गुरु अर्जुन देव जी महाराज को सुनने जाया करते थे । एक दफा गुरु अर्जुन देव जी महाराज का उनके बगल वाले गाँव में आना हुआ । दोनों बेहद खुश हुए । उन्हें भी गुरु सेवा का मौका जो मिलने जा रहा था । दोनों सुबह सवेरे उठ जाते और जल्दी जल्दी तैयार होकर वहां पहुंच जाते जहाँ सत्संग का पंडाल लगा होता था ।
.
दोनों झाड़ू पौचा लगाते, पानी भरते तथा और जो सेवा उन्हें मिलती वे करते थे ।और जब गुरु महाराज सत्संग फरमाने के लिए पंडाल की तरफ चलते तो पुत्र सम्मन उनके आगे आगे नाचता हुआ चलता था । उसका नाचना मन्त्र मुग्ध कर देता था । उसका नाचना देखने लायक होता था । उसे नाचता देख सभी खुश होते थे । एक रात जब वे सोने के लिए लेटे तो पुत्र ने पिता से अपने दिल की एक बात कही जो कि उसने काफी दिनों से दिल में दबा रखी थी ।
.
"पिता जी, क्या हम भी कभी इस लायक होंगे कि हम भी गुरु जी को अपने घर बुलाएँ ?"
"मैं भी चाहता हूँ कि गुरु महाराज हमारे घर भी आयें, सारी संगत को साथ लायें, हमारे यहाँ सत्संग फरमाएं ।"
"हाँ पिता जी, मैंने कई बार सपने में भी देखा है कि गुरु जी हमारे घर आयें हैं, बहुत संगत भी साथ है । लंगर(सामुहिक भोजन) भी पकते देखा है । क्या सचमुच में गुरु महाराज आएंगे हमारे घर ?"
क्या मालूम बेटे, ये तो वही जानते हैं, मैंने तो कई बार उनके सामने खड़े होकर प्रार्थना भी की है कि गुरु महाराज, हमे भी इस लायक बना दो कि हम भी आपको अपने घर बुला सकेँ । क्या मालूम, वो दिन कभी आएगा या नही ।"
.
कमरे में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया ।
सन्नाटे को तोड़ते हुए पुत्र बोला," पिता जी क्यों न हम किसी से उधार लें लें, धीरे धीरे चुका देंगे."
"हम गरीबों को कौन उधार देगा ? सभी जानते हैं कि हम बड़ी मुश्किल से अपने लिए ही खाने का इंतजाम कर पाते हैं, उधार कैसे चुकायेंगे ?"
"पिता जी हम एक समय का भोजन कम कर लेंगे, उधार पहले चुकायेंगे ।"
.
कमरे में फिर सन्नाटा छा गया ।
"पिता जी, हमारे सामने ही हलवाई है । हमने इससे पहले भी कई बार उधार लिया है, और समय पर चुकाया भी है । आप इसी को पूछ देखो, शायद इस बार भी उधार दे ही दे ।"
"पहले तो बेटे हमारे अकेले के लिए ही होता था । इस बार लम्बा चौड़ा उधार हो जायेगा, अगर उसने पेशगी कुछ मांग लिया तो ?"
.
"पिता जी, गुरु जी का सहारा लेकर हम वह उधार भी चूका ही देंगे, गुरु जी का ओट आसरा लेकर आप सुबह चले ही जाना, मुझे उम्मीद है कि हलवाई मना नही करेगा ।"
"अच्छा बेटे सुबह जाकर देख लेते हैं एक बार, अगर मान गया तो गुरु जी सेवा हो जाएगी ।"
सुबह हुई, दोनों पिता और पुत्र तैयार होकर हलवाई की दूकान पर पहुंच गये, हलवाई दूकान पर ही मिल गया । दोनों को अपनी दूकान पर आया देख हलवाई ने आने का कारण पूछा ।
.
पिता ने बात शुरू करते हुए कहा,"आपसे कहते हुए कुछ शर्म महसूस हो रही है ।"
"नही भाई शर्म की कोई बात नही है, जो कहना हो कहो, अगर उधार की जरूरत है तो वो दूंगा, पहले भी कई बार लिया है । भाई जो तय समय पर वापिस कर देता है उसे कोई मना नहीं है ।"
"इस बार कुछ ज्यादा चाहिए ।"
"कितना चाहिए ?"
.
"दर असल आपको तो मालूम ही है कि हमारे गुरु जी बगल वाले गाँव में आये हुए हैं, हम उन्हें यहाँ अपने घर बुलाना चाहते हैं । उनके साथ संगत भी होगी, सबके लिए लंगर तैयार करना है ।"
"कब बुला रहे हो ?"
"अगर आप की तरफ से हां होगी तो हम आज ही उन्हें न्योता दे देंगे ।"
"पेशगी कितना दोगे ?"
.
"पेशगी देने को तो हमारे पास कुछ भी नही है, पर विश्वास रखना हम थोड़ा थोड़ा करके उतार देंगे ।"
"संगत कितनी होगी ?"
"एक बार साथ चल कर देख लो आपको सही अंदाजा लग जाता है ।"
कुछ देर सोचने के बाद हलवाई उनके साथ गया और उसने संगत देख अंदाज़ा लगा लिया कि कितना इंतजाम करना है । हलवाई ने उनसे कहा " मैं आपको हिसाब लगा कर बता दूंगा कि कितना खर्च होगा" ।
.
वे दोनों शाम को हलवाई के पास पहुंच गये, हलवाई ने उन्हें हिसाब लगा कर बता दिया जितना खर्च लगना था ।
हलवाई ने कहा "बस एक दिन पहले बता देना कि गुरु जी का आना कब होगा ? बाकी सारा काम मेरा"।
"आप एक बार फिर से सोच लो, उधार देने के बारे में, कहीं ऐसा न हो कि हम गुरु जी को न्योता दे देवें और आपकी तरफ से न हो जाये ।"
"नही भाई न नहीं होगी नही भाई न नहीं होगी आप बेफिक्र होकर बुलाओ, बस एक दिन पहले बता देना ।"
.
सम्मन और मूसन के गाँव में सब को पता लग गया कि गुरु जी इनके यहाँ आयेंगे । बगल वाले घर में एक सेठ रहता था । बेहद कंजूस था वह । उसे भी पता लगा कि बगल वाले सम्मन मूसन के घर में गुरु जी का आना हो रहा है । उसे फ़िक्र लग गयी कि अगर बगल वाले घर में गुरु जी का आना हुआ तो "मुझे भी बुलाना पड़ेगा, बहुत पैसा खर्च हो जायेगा, ऐसा करूँ कि इनके घर भी गुरु का आना रुक जाये, नही तो अपनी नाक ही कट जाएगी, अपनी नाक बचाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा । नही तो लोग कहेंगे कि गरीब ने अपने घर इतना बड़ा सत्संग करवाया है, और सेठ ने ? अरे न जी मैं तो ऐसा सोचने का मौका किसी को न दूंगा ।"
.
सेठ अपनी नाक ऊंची रखने की तरकीब सारी रात भर लगाता रहा और करवटें बदलता रहा । अगली सुबह दोनों पिता और पुत्र गुरु जी के सामने पेश हुए । बेहद खुश थे दोनों । दोनों ने हाथ जोड़ विनती की, "महाराज जी, हम आपसे विनती करते हैं कि आप हमारे घर आओ, सारी संगत को भी साथ लायो, हमारे घर सत्संग फरमाओ । और लंगर प्रसाद भी ग्रहण करो" ।
"तो ठीक है, आप बहुत प्यार से बुला रहे हो, हम जरूर आयेंगे ।
अब हमारे वापिस लाहौर जाने का समय भी आ ही गया है । इस लिए "कल ही आपके घर आ रहे हैं"।
.
दूसरी तरफ सेठ हलवाई की दूकान पर हलवाई से मिलने पहुंचा, और बात शुरू करते हुए बोला, "मैंने सुना है कि हमारे गाँव में गुरु का आना हो रहा है और वह भी सम्मन मूसन के घर ।"
"हाँ, इन्ही के घर आ रहे हैं ।"
"कब आ रहे हैं ?"
"अभी तो गुरु के वहीं गये हैं, शाम को आएंगे तो पता लगेगा कि गुरु महाराज का आना कब होगा ।"
"अरे, इनसे अपनी रोटी का इंतजाम हो नही पाता है, मैंने सुना है कि उनके साथ तो और भी बहुत संगत होती है । कहाँ से इतना इंतजाम कर रहे हैं ?"
.
पास में ही एक ग्राहक बैठा था बोला, "इसी हलवाई से उधार ले रहे हैं ।"
सेठ का इतना सुनना था कि वह हलवाई को बोला,"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है लगता, अरे जो अपने लिए इंतजाम नही कर पाते, कर्ज़ कैसे उतारेंगे, साल दो साल में भी कर्ज़ उतारा तो क्या उतारा, ऐसी रकम का आना न आना तो एक बराबर ही समझो, मैं तो तेरे भले की कहता हूँ, आगे जैसे तुम्हारा मन माने वैसे करो । इतना कह सेठ अपने घर वापिस चला गया ।
.
अब हलवाइ का दिमाग ठुनक गया । उसे लगा कि सेठ ठीक ही कह रहा है । हलवाई ने पक्का फैसला कर लिया कि अब इन्हें उधार बिलकुल नही देना । वह मन ही मन सेठ का शुकराना करने लगा कि सेठ ने उसे सही समय पर चेता दिया ।
.
साँझ हुई, दोनों पिता पुत्र ख़ुशी ख़ुशी गाँव वापिस आये और सीधे ही हलवाई के पास पहुंचे ।
"महाराज जी ने कल ही हमारे घर आने की हामी भरी है । आप -------" ।
हलवाई ने बात बीच में ही काटते हुए कहा, "पहले मेरी बात सुन लो, मैं तो इक्क्नी का भी उधार न करूंगा सारे पैसे पहले जमा करवाओ, फिर आगे बात करना ।"
.
पिता पुत्र को मानो कोई सांप सूंघ गया । वे हक्के बक्के हो गये ।
हलवाई से बोले, "मैंने तो पहले आपको सोचने का मौका दिपया था, आपकी(posted by Inder Singh) हाँ पर ही हमने गुरु महाराज को न्योता दिया है, हम तुम्हारे पाँव पकड़ते हैं ।महाराज तो कल ही सुबह आयेंगे, हम क्या मुंह दिखायेंगे ?"
"ये सोचना तुम्हारा काम है, मेरा नही, मुझे तो पैसे से मतलब है, अपनी इज्जत की चिंता तुम्हें करनी है, मुझे नही ।"
.
दोनों पिता पुत्र रुआंसे से हो गये, घर आये, पुत्र का तो रोना ही बंद न हो रहा था । कहाँ वो सोच रहा था कि कैसे कैसे वो गुरु की सेवा करेगा । गुरु के जाने के बाद हमारे घर भी एक जगह बन जाएगी जहाँ गुरूजी का आसन लगेगा और हम वहां रोज़ मस्तक निवा सकेंगे, हम भी वहां रोज़ माथा टेक सकेंगे । उसे लग रहा था कि जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गयी हो ।
रात का तीसरा पहर शुरू हो रहा था पर पिता पुत्र की आँखों से नींद गायब हो चुकी थी ।
.
चुप्पी तोड़ते हुए पुत्र ने कहा,"पिता जी, पैसे का इंतजाम तो पडोसी सेठ के घर से ही हो सकता है ।"
"वो कैसे ?"
"इसके घर में सेंध लगा कर उतना ही निकाल लेते हैं जितनी हमे जरूरत है" । "क्या, चोरी ?" "हाँ पिता जी" ।
.
"नही बेटे, हमारे गुरु जी को सब पता लग जाता है । हम चोरी नही कर सकते ।"
"तो पिता जी, फिर सुबह गुरु को क्या मुख दिखायेंगे ?"
"बेटे चोरी करके कैसे गुरु से कहेंगे कि आओ भोजन करो, भोजन पर नजर पड़ते ही वे समझ जायेंगे कि चोरी के सामान से भोजन पका है ।"
.
पिता जी, मैं सेंध लगाने से पहले प्रार्थना करूंगा कि हे गुरुदेव जो कुछ हो रहा है, आप देख ही रहे हो, बस एक ही अरदास है कि पर्दे हमारे ढक लेना । अगर पर्दे उठ गए तो गुरुदेव आपको ही कलंक लगेगा कि गुरु के शिष्य सारा दिन सेवा करके जग दिखावा करते हैं और रात को चोरियां करते हैं ।
पिता मजबूरी का मारा उठा और अनमने से पुत्र के साथ सेंध लगाने घर से बाहर निकल आया । सेठ का घर बिलकुल बगल वाला ही था । वे गली में निकले, दूर दूर तक कोई नज़र नही आ रहा था ।
.
पुत्र ने औजार से दीवार में सेंध लगानी शुरू करदी । इतना ही मोरा किया कि एक व्यक्ति आराम से भीतर जा सकता था । पुत्र भीतर चला गया । अंदर अँधेरा था । उसने सामान टटोलना शुरू किया, उसके हाथ एक कनस्तर लगा, उसने बाहर पिता को पकड़ा दिया । पिता जल्दी से घर जाकर रख आया । इतने में बेटे ने कुछ सामान और निकाल रखा था, उसने वह भी बाहर निकलना शुरू किया ।
.
अंदर सेठ को भनक लग गयी उसने कमरे के दरवाजे को बाहर से खोला, बेटा घबरा कर मोरे से बाहर निकलने के कौशिश करने लगा ।
उसका सिर बाहर और धड़ भीतर ही था कि सेठ ने पीछे से दबोच लिया । बेटे के दोनों हाथ भी बाहर निकल चुके थे ।
सेठ ने सम्मन की टांगो को अच्छी तरह से दबा लिया, सेठानी और घर के अन्य सदस्य भी आ गये । अब घर के सभी सदस्य मिल कर चोर की टांगो को भीतर की तरफ खींचने में लग गये ।
.
सम्मन ने अपनी दोनों बाँहों को फैला लिया । ताकि वह भीतर की तरफ खींचा न जा सके ।
सम्मन ने कहा "पिता जी, आप जल्दी से घर जाओ, मैं यहाँ से सही सलामत नही निकल सकता, गुरु को कलंक नही लगना चाहिए । जाओ घर से गंडासा, फरसा या जो भी हथियार हाथ लगे ले आओ । मूसन के हाथ जो लगा वह ले आया, वह नही जानता था कि सम्मन क्या करने वाला है ।
.
सम्मन बोला, "पिता जी, बाँहों की हिम्मत जवाब दे रही है । पीछे से सारा परिवार मिल कर भीतर की तरफ खींच रहा है ।अगर मै भीतर की तरफ खींच लिया गया तो पहचान में आ जाऊंगा । गुरु जी को कलंक लगेगा कि दिन में सेवा करते है, गुरु के गुण सारा दिन गाते हैं और रात चोरियां करते हैं । पिता जी, अब सोचने का समय बिलकुल नही है । आप मेरा सिर काट कर घर ले जाओ । धड़ से मुझे कोई नही पहचान सकेगा ।" मूसन ये सुनते ही घबरा गया । अपने हाथों से कैसे उस सिर को काट ले जिस पर उसने सेहरा बांधना है । पर सम्मन है कि जल्दी सिर काटने को दबाव बना रहा था कि अगर पहचान में आ गया तो गुरु को कलंक लगेगा जो कि नही लगना चाहिए ।
.
अपनी जान की परवाह नही कर रहा बेटा और गुरु की शान बनी रखने के लिए सिर कटवाने को तैयार था । अब पिता ने भरे गले से बेटे का सिर काटा और घर ले आया । घर आकर उसने सिर को पिछले कमरे में रखा और चादर से ढक दिया । दोनों हाथ जोड़ गुरु से क्षमा याचना करने लगा ।
इतने में मूसन का दरवाज़ा किसी ने बाहर से खटखटाया । मूसन घबरा गया, शायद किसी ने उसे सेंध लगाते और बेटे का गला काटते देख लिया है ।मूसन को काटो तो खून नही । वह घबरा गया था फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और दरवाजे के पास पहुंच कर पूछा, "कौन हो भई ?"
.
बाहर से जवाब आया "तुम्हारा पड़ोसी हूँ, सेठ ।"
अब मूसन को लगने लगा कि पकड़े गये । फिर भी उसने डरते डरते दरवाज़ा खोला । सामने सेठ खड़ा था । मूसन इससे पहले कि हाथ जोड़ता सेठ ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "मूसन, मैं भाई एक दुविधा में फस गया हूँ । मेरी मदद करो ।"
"क्या हुआ सेठ जी" ?
"मूसन, मेरे घर में कोई लाश फैंक गया है । पता नही किसकी है । आप इस लाश को उठा कर कहीं दूर फैंक आओ मुझे जो कहोगे मैं तुम्हे दे दूंगा"।
.
मूसन उसके घर गया, उसने भरे दिल से लाश को उठाया और अपने घर आकर उसने धड़ और सिर को साथ साथ रख दिया । बाहर सेठ आया और उसने मूसन को काफी पैसे दिए । सेठ बोला, "मूसन, मैंने सुना है कि तुम्हारे घर सुबह गुरु महाराज आ रहे हैं और हलवाई ने लंगर पकाने से मना कर दिया है । मूसन ने हाँ में जवाब दिया तो सेठ ने कहा कि इन पैसों से आप सारा इंतजाम कर लो मैं तुम्हें और पैसे भी दे देता हूँ । गुरु सेवा में कोई कमी न छोड़ना ।"
.
सुबह हुई, मूसन ने हलवाई को जाकर पैसे दिए और लंगर तैयार करने को बोल दिया ।
गुरु जी आने का समय हुआ और गुरु महाराज समय पर पहुंच गए। ।कीर्तन और सत्संग के बाद भोजन(लंगर) का समय हुआ ।सभी पंक्तियों में बैठ गए । मूसन ने हाथ जोड़ कर गुरु जी को तथा सारी संगत को भोजन शुरू करने का आग्रेह किया ।
मूसन तुम्हारा बेटा नजर नही आ रहा, कहाँ है, उसे बुलाओ" ।
.
"महाराज जी कोई जरूरी काम आन पड़ा था इस लिए उसे जाना पड़ा"
"ऐसा भी कौन सा जरूरी काम पड़ गया, न भई हम तो उसके बिना भोजन न करेंगे"।और ऐलान कर दिया गया कि अभी भोजन कोई शुरू नही करेगा ।
मूसन ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा,"महाराज जी, वह तो बहुत दूर चला गया है ।"
"चाहे कहीं भी हो हम तो उसके बिना भोजन न करेंगे । अरे हमे याद है कि वो हमारे आगे आगे मोरों की तरह नाचता हुआ चलता है । ऐसे प्यारे के बिना हम भोजन कैसे कर सकते हैं ?"
.
अब मूसन रोने लग गया, बोला "गुरूजी आप विशवास रखो, वो बहुत दूर निकल चूका, मेरी आवाज नही पहुंच सकती, आप आवाज़ लगा कर देख लो, शायद आपकी आवाज़ वहाँ पहुंच जाये ।"
"अच्छा, तो हमीं आवाज़ लगाते हैं, क्या नाम है तुम्हारे बेटे का ?"
"जी, उसका नाम है सम्मन"।
"सम्मन, ओ बेटा सम्मन, आओ हम तुम्हारी इंतजार कर रहे हैं"। गुरु जी ने आवाज़ लगायी ।
.
पिछला दरवाज़ा खुला और सम्मन सामने आ गया । आकर उसने गुरु जी के चरण स्पर्श कर माथा टेका ।
सारी संगत हैरान, कि ये क्या माजरा है । बेटे को पिछले कमरे में बंद कर गुरु से झूठ बोलता है, बेटा दूर गया है ।
गुरु जी ने सबको चुप कर भोजन करने का इशारा किया ।
जब सबने भोजन कर लिया तो गुरु जी ने पिता पुत्र से कहा "आप ने जो सेवा आज की है और जिस प्रकार से की है, ये इतिहास में याद की जाएगी, अब रब्ब का घर तुम्हारे लिए खुला जो चाहोगे रब्ब के घर से मिल जायेगा ।"
.
"हमे तो कुछ नही चाहिए, हम पडोसी सेठ को बुला लाते हैं वो जो मांगे, आप उसे दे देना ।" सभी हैरान कि सेवा तो की इन्होने और मांग रहे हैं कि जो पड़ोसी मांगे, उसे दे देना ।
पड़ोसी सेठ को बुलाया । वो डरता हुआ आया कि कहीं हलवाई ने भेद तो नही खोल दिया या कहीं लाश वाली बात तो नही पता लग गयी सबको ।
जब सेठ आया तो पिता ने बताया कि "सेठ ने ही हम को मदद दी थी, नही तो हम से ये सेवा नही हो सकनी थी, हम तो सेठ के धन्यवादी हैं जो आज आपकी इतने अच्छे से सेवा कर सके ।"
.
"अच्छा तो फिर अंदर की बात भी बता दो"। इससे पहले कि मूसन कुछ बोलता सेठ ने गुरु जी के पैर पकड़ माफ़ी मांगी और अपनी करनी जो उसने हलवाई को भड़काने की की थी, बता दी और क्षमा मांगी । गुरु जी ने उसे क्षमा किया और मूसन की तरफ देखा तो मूसन बोला, "महाराज जी, आपकी जैसी इच्छा हो, आप चाहो तो हमारे पर्दे ढक लो और चाहो तो सारे पर्दे खोल दो ।"
"तेरे सारे पर्दे हमने ढक लिए, पर तेरा नाम इतिहास में हमारे साथ जुड़ा रहेगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें