#daduji
३६ ~ बेली का अंग ~ श्री दादूवाणी ~ http://youtu.be/0cme5A-5Zz4
मंगलाचरण
दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥ १ ॥
दादू अमृत रूपी नाम ले, आत्म तत्त्वहि पोषै ।
सहजैं सहज समाधि में, धरणी जल शोषै ॥ २ ॥
पसरै तीनों लोक में, लिप्त नहीं धोखे ।
सो फल लागै सहज में, सुन्दर सब लोके ॥ ३ ॥
दादू बेली आत्मा, सहज फूल फल होइ ।
सहज सहज सतगुरु कहै, बूझै बिरला कोइ ॥ ४ ॥
जे साहिब सींचै नहीं, तो बेली कुम्हलाइ ।
दादू सींचै सांइयाँ, तो बेली बधती जाइ ॥ ५ ॥
हरि तरुवर तत आत्मा, बेली कर विस्तार ।
दादू लागै अमर फल, कोइ साधू सींचनहार ॥ ६ ॥
दादू सूखा रूंखड़ा, काहे न हरिया होइ ।
आपै सींचै अमीरस, सुफल फलिया सोइ ॥ ७ ॥
कदे न सूखै रूंखड़ा, जे अमृत सींच्या आप ।
दादू हरिया सो फलै, कछू न व्यापै ताप ॥ ८ ॥
जे घट रोपै राम जी, सींचै अमी अघाइ ।
दादू लागै अमर फल, कबहूँ सूख न जाइ ॥ ९ ॥
दादू अमर बेलि है आत्मा, खार समंदां मांहिं ।
सूखे खारे नीर सौं, अमर फल लागे नांहिं ॥ १० ॥
दादू बहुगुणवंती बेलि है, ऊगी कालर मांहिं ।
सींचै खारे नीर सौं, तातैं निपजै नांहिं ॥ ११ ॥
बहुगुणवंती बेली है, मीठी धरती बाहि ।
मीठा पानी सींचिये, दादू अमर फल खाहि ॥ १२ ॥
अमृत बेली बाहिये, अमृत का फल होइ ।
अमृत का फल खाइ कर, मुवा न सुणिया कोइ ॥ १३ ॥
दादू विष की बेली बाहिये, विष ही का फल होइ ।
विष ही का फल खाय कर, अमर नहिं कलि कोइ ॥ १४ ॥
सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार ।
प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार ॥ १५ ॥
दया धर्म का रूंखड़ा, सत सौं बधता जाइ ।
संतोंष सौं फूलै फलै, दादू अमर फल खाइ ॥ १६ ॥
इति श्री दादूदास-विरचिते सतगुरु-प्रसादेन प्रोक्तं भक्ति योगनाम तत्वसारमत-सर्वसाधुर्बुद्धिज्ञान-सर्वशास्त्र-शोधितं रामनाम सतगुरुशिक्षा धर्मशास्त्र-सत्योपदेश-ब्रह्मविद्यायां मनुष्य जीवनाम् नित्य-श्रवणं पठनं मोक्षदायकम् श्री दादूवाणीनाम् माहात्म्य छत्तीसवां बेली का अंग सम्पूर्ण ॥ अंग ३६ ॥ साखी १६ ॥
३६ ~ बेली का अंग ~ श्री दादूवाणी ~ http://youtu.be/0cme5A-5Zz4
मंगलाचरण
दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥ १ ॥
दादू अमृत रूपी नाम ले, आत्म तत्त्वहि पोषै ।
सहजैं सहज समाधि में, धरणी जल शोषै ॥ २ ॥
पसरै तीनों लोक में, लिप्त नहीं धोखे ।
सो फल लागै सहज में, सुन्दर सब लोके ॥ ३ ॥
दादू बेली आत्मा, सहज फूल फल होइ ।
सहज सहज सतगुरु कहै, बूझै बिरला कोइ ॥ ४ ॥
जे साहिब सींचै नहीं, तो बेली कुम्हलाइ ।
दादू सींचै सांइयाँ, तो बेली बधती जाइ ॥ ५ ॥
हरि तरुवर तत आत्मा, बेली कर विस्तार ।
दादू लागै अमर फल, कोइ साधू सींचनहार ॥ ६ ॥
दादू सूखा रूंखड़ा, काहे न हरिया होइ ।
आपै सींचै अमीरस, सुफल फलिया सोइ ॥ ७ ॥
कदे न सूखै रूंखड़ा, जे अमृत सींच्या आप ।
दादू हरिया सो फलै, कछू न व्यापै ताप ॥ ८ ॥
जे घट रोपै राम जी, सींचै अमी अघाइ ।
दादू लागै अमर फल, कबहूँ सूख न जाइ ॥ ९ ॥
दादू अमर बेलि है आत्मा, खार समंदां मांहिं ।
सूखे खारे नीर सौं, अमर फल लागे नांहिं ॥ १० ॥
दादू बहुगुणवंती बेलि है, ऊगी कालर मांहिं ।
सींचै खारे नीर सौं, तातैं निपजै नांहिं ॥ ११ ॥
बहुगुणवंती बेली है, मीठी धरती बाहि ।
मीठा पानी सींचिये, दादू अमर फल खाहि ॥ १२ ॥
अमृत बेली बाहिये, अमृत का फल होइ ।
अमृत का फल खाइ कर, मुवा न सुणिया कोइ ॥ १३ ॥
दादू विष की बेली बाहिये, विष ही का फल होइ ।
विष ही का फल खाय कर, अमर नहिं कलि कोइ ॥ १४ ॥
सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार ।
प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार ॥ १५ ॥
दया धर्म का रूंखड़ा, सत सौं बधता जाइ ।
संतोंष सौं फूलै फलै, दादू अमर फल खाइ ॥ १६ ॥
इति श्री दादूदास-विरचिते सतगुरु-प्रसादेन प्रोक्तं भक्ति योगनाम तत्वसारमत-सर्वसाधुर्बुद्धिज्ञान-सर्वशास्त्र-शोधितं रामनाम सतगुरुशिक्षा धर्मशास्त्र-सत्योपदेश-ब्रह्मविद्यायां मनुष्य जीवनाम् नित्य-श्रवणं पठनं मोक्षदायकम् श्री दादूवाणीनाम् माहात्म्य छत्तीसवां बेली का अंग सम्पूर्ण ॥ अंग ३६ ॥ साखी १६ ॥

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