#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग*
.
*आप हु रांम उपावत रांम हि,*
*भंजन रांम संवारन रांमै ।*
*दृष्ट हु रांम अदृष्ट हु रांम हि,*
*इष्ट हु रांम करै सब कांमै ॥*
*बर्ण हु रांम हि अबर्ण हु रांम हि,*
*रक्त न पीत न स्वेत न स्यामैं ।*
*सुंनि हु रामं असुंनि हि रांम हि,*
*सुन्दर रांम हि नांम अनांमै ॥६॥*
॥ इति भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ॥
वह राम ही सृष्टि का कर्ता भी है, तथा सृष्टिसंहारक भी और वहीं इस सृष्टि का पालन भी करता है ।
दृष्ट(वर्तमान जगत) भी राम है, इष्ट भी राम ही है तथा वह राम ही सब कामनाओं को पूर्ण करता है ।
सभी प्रकार के रंगों या बिरंगों में वह राम ही व्याप्त है । फिर भी वह न लाल है न पीला है, न श्वेत है न काला ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वह राम शून्य(सदसदनिर्वचनीय) भी है तथा अशून्य भी है । वह राम नाम वाला भी है तथा नाम रहित भी है ॥६॥
॥ भक्ति ज्ञान मिश्रित का अंग सम्पन्न ॥२१॥
(क्रमशः)
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग*
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*आप हु रांम उपावत रांम हि,*
*भंजन रांम संवारन रांमै ।*
*दृष्ट हु रांम अदृष्ट हु रांम हि,*
*इष्ट हु रांम करै सब कांमै ॥*
*बर्ण हु रांम हि अबर्ण हु रांम हि,*
*रक्त न पीत न स्वेत न स्यामैं ।*
*सुंनि हु रामं असुंनि हि रांम हि,*
*सुन्दर रांम हि नांम अनांमै ॥६॥*
॥ इति भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ॥
वह राम ही सृष्टि का कर्ता भी है, तथा सृष्टिसंहारक भी और वहीं इस सृष्टि का पालन भी करता है ।
दृष्ट(वर्तमान जगत) भी राम है, इष्ट भी राम ही है तथा वह राम ही सब कामनाओं को पूर्ण करता है ।
सभी प्रकार के रंगों या बिरंगों में वह राम ही व्याप्त है । फिर भी वह न लाल है न पीला है, न श्वेत है न काला ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वह राम शून्य(सदसदनिर्वचनीय) भी है तथा अशून्य भी है । वह राम नाम वाला भी है तथा नाम रहित भी है ॥६॥
॥ भक्ति ज्ञान मिश्रित का अंग सम्पन्न ॥२१॥
(क्रमशः)

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