सोमवार, 30 मार्च 2015

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
१७३. निस्पृहता पंजाबी । त्रिताल ~
राम सुख सेवक जानै रे, दूजा दुख कर माने रे ॥ टेक ॥
और अग्नि की झाला, फंद रोपे हैं जम जाला ।
सम काल कठिन शर पेखें, यह सिंह रूप सब देखें ॥ १ ॥
विष सागर लहर तरंगा, यहु ऐसा कूप भुवंगा ।
भयभीत भयानक भारी, रिपु करवत मीच विचारी ॥ २ ॥
यहु ऐसा रूप छलावा, ठग पासीहारा आवा ।
सब ऐसा देख विचारे, ये प्राण घात बटपारे ॥ ३ ॥
ऐसा जन सेवक सोई, मन और न भावै कोई ।
हरि प्रेम मगन रंग राता, दादू राम रमै रस माता ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव संतभक्तों की निःस्पृहता दिखा रहे हैं कि संतजन एक राम को ही सुख - स्वरूप जानते हैं, राम से अलग और सबको दुःख रूप मानते हैं । माया और माया के कार्य, वे सब अग्नि की ज्वाला के समान चिन्ता द्वारा जलाने वाले हैं । ये माया ने, यमराज का जाल बिछा कर, जीवों को फँसाने के लिये फंदे रोपे हैं । इन सबको काल के कठिन सर(बाण) के समान देखें । ये भयंकर सिंह रूप जीवों को खाने वाले काल रूप हैं । जो मन में विषयों की वासना रूप तरंगें उठती हैं, वे विष समुद्र की लहर के समान हैं । जैसे सर्पों से परिपूर्ण कूप भयंकर होता है, ऐसा ही अति भयानक यह संसार रूपी कुआँ है । इसमें नाना प्रकार के संशय रूप सर्प पड़े हुए हैं । यह भय और करवत से चीर कर मारने वाले भयानक शत्रुओं के समान हैं । ये ठग गले में फाँसी डालने वाले हैं, किन्तु ऐसे छलिया के रूप में सामने आते हैं कि अज्ञानी प्राणी इसे हितकर मान लेते हैं । फिर भी साधक - जन, भगवान् से भिन्न सबको विचारपूर्वक ऐसे देखते हैं कि यह माया के बनाए हुए ऐसे ठग छलावे रूप में छलने वाले हैं, जैसे रास्ते में घातक लुटेरे लूट लेते हैं । इसी प्रकार स्त्री, धन, पुत्र, परिवार, ये सब मोह रूप फाँसी डाल कर मोक्ष मार्ग में प्रतिबन्धक हैं ।
जो कोई ऐसा निःस्पृह भक्त - जन होता है, उसके मन को भगवान् के बिना और कोई भी प्रिय नहीं लगते । वह तो हरि में अनुरक्त रहकर हरि प्रेम में निमग्न रहता है और प्रेम - रस से मस्त हुआ राम के साथ ही रमण करता है ।
किलो बणत कही छीतरी, डारि लेहु कहि नाम । 
दूणी कोडी देहिंगे, अलसाने गये धाम ॥ १७३ ॥ 
दृष्टान्त ~ एक राजा का किला बन रहा था । राजा भक्त था । मंत्री को बोला ~ “इन मजदूरों को जाकर बोलो कि मिट्टी खोदते समय राम - राम कहो, टोकरी में डालते समय राम - राम कहो, लेकर आते समय राम - राम कहो और फिर वापिस जाते समय राम - राम कहो । आपस में दूसरी बात मत करो । तुमको दुगुनी मजदूरी मिलेगी ।” थोड़ी देर तो वैसे करने लगे और फिर बातें करनी शुरू कर दीं । राजा बोले ~ “जैसे तुम्हें बताया, वैसे करो” । फिर राम - राम करने लगे । फिर बातें करने लग गये । शाम को सब मजदूर बोले ~ “हमारे पैसे दे दो, हम कल काम करने नहीं आवेंगे ।” राजा बोला ~ “क्या बात है ? क्यों नहीं आवोगे ?” मजदूर बोले ~ “हमसे राम - राम नहीं होता है, मिट्टी तो डाल देंगे, परन्तु राम - राम नहीं करेंगे ।” राम - राम से उदास होकर घर चले गये ।

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