सोमवार, 13 अप्रैल 2015


जियरा ! राम भजन कर लीजे ।
साहिब लेखा माँगेगा रे, उत्तर कैसे दीजे ॥ टेक ॥ 
आगे जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजे ।
तातैं जिय समझाइ कहूँ रे, सुकृत अब तैं कीजे ॥ १ ॥ 
राम जपत जम काल न लागे, संग रहै जन जीजे ।
दादू दास भजन कर लीजे, हरि जी की रास रमीजे ॥ २ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव उपदेश द्वारा चेत कराते हैं कि हे हमारे जीव रूप मन ! इस मनुष्य देह रूपी अवसर में राम का भजन कर ले, इसी में तेरा कल्याण है । वह साहिब सर्व शक्तिवान परमेश्वर ने तुझे इस संसार में मनुष्य देह देकर भेजा है सत् - कर्म करने के लिये । जब तूँ धर्मराज के दरबार में जायेगा, तो तेरे कर्त्तव्यों का लेखा हिसाब वहाँ लिया जाएगा । भजन और सत् - कर्म किए बिना वहाँ क्या जवाब देगा ? हे मन ! एक - एक पल में तेरे मनुष्य देह के श्वास और यह तन क्षीण होता जा रहा है । आगे वृद्धावस्था में या अन्त समय में पश्चात्ताप करना पड़ेगा । इसलिए हे जीव रूप मन ! हम तेरे को सत्शास्त्र और सतगुरु के उपदेशों द्वारा समझा कर कहते हैं कि तूँ अब सुकृत कहिए निष्काम - कर्म, परोपकार और जन समुदाय की सेवा कर ले । हे जीव रूप मन ! राम का भजन करने से काल रूप यम तेरा स्पर्श नहीं करेगा और राम के साथ रहकर, हे जन ! सजीवन भाव को प्राप्त होगा । ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव कहते हैं कि उपरोक्त प्रकार से सुकृत और राम का भजन करके हरि स्वरूप राम से आनन्द अनुभव रूपी रास रमिये ।

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