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॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
अथ अध्याय २ ~
४ आचार्य फकीरदासजी ~
आचार्य फकीरदासजी के समय में प्राय: दादूपंथ के सभी संत “दादूपंथी परीक्षा” ग्रंथ में कथित लक्षणों से युक्त ही होते थे । उनके लक्षणों को देख करके ही दास ने उक्त ग्रंथ लिखा था । यह इस ग्रंथ के नाम से ही सूचित होता है । दादूपंथीयों में जो जो लक्षण वर्तते थे वे ही उक्त ग्रंथ में दास जी ने बताने का यत्न किया है । इससे सूचित होता है कि उस समय दादूपंथ के संत प्राय: उच्च कोटि के ही होते थे । कारण - अपने आचार्य फकीरदास जी का आदर्श अपने सामने रख करके ही अपना जीवन त्याग वैराग्यमय ही बनाते थे ।
फकीरदासजी के गद्दी पर विराजने के समय समाज परम शांत रहता था । किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं उठ सका था । कारण फकीरदास जी के त्याग, वैराग्य, भजन, उदारता, समता, क्षमाशीलता, वाक्य व्यवहार आदि से संपूर्ण समाज आप पर अटूट श्रद्धा रखता था । मतभेद में कारण राग, द्वैष, परिग्रह आदि होते हैं, सो फकीरदासजी इन सबसे अति दूर रहकर निरंतर ब्रह्म - भजन में ही लगे रहते थे । इस साधन में उनकी सहायक श्रीदादू वाणी थी । बालपन से ही आप उच्चकोटि के विद्वान संतों से दादूवाणी सुनते रहे थे, इससे आप में अनायास ही संतत्व आ गया था । संतत्व के कारण आप का बर्ताव सब के साथ समभाव से ही होता था । आपने अपने जीवनकाल में ब्रह्मानन्द का अनुभव किया था और समाज को भी उस पथ पर आगे बढाया था ।
(क्रमशः)
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