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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ एकादश विन्दु ~*
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पश्चात् दादूजी की आज्ञा लेकर अपने तीन भाई बनवारी, हरदास और शंकर को भी बुला लिया । उन में बनवारी और हरदास उस समय संन्यासी हो गये थे । जैसे कहा है -
"बनवारी गिरि हरि गरि नामा, स्वामी दर्शन उपजी कामा ॥"
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अब वे बनवारी गिरि और हरिगिरि नाम से बोले जाते थे । अपने दोनों भाइयों का पत्र मिलने पर पत्र में लिखित समाचार जाने । पत्र में लिखा था घर से निकल कर काशी गये वहां वेद वेदांतों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया और फिर विचरते हुये राजस्थान प्रांत के जोबनेर नगर में तीन मास साधन करते रहे । वहां ही हम को दादूजी का पता लगा ।
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अब हम दोनों सांभर में दादूजी के पास हैं । हमने घर से निकलने के पश्चात् दादूजी को ही अति उच्च कोटि के संत को अपनी विचार शक्ति से समझे हैं । इतने समय में दादूजी के समान कोई भी नहीं मिला था । दादूजी परमयोगीश्वर, परम अनुभवी हैं, इनके विषय में हम लिख नहीं सकते कि ये कितने श्रेष्ठ संत हैं । इस समय हम दोनों भाई साँभर में दादूजी के पास हैं ।
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आप लोग भी शीघ्र यहां आकर अपने जीवन को सफल करें । इस समय हम दादूजी की निर्गुण ब्रह्म भक्ति की पद्धति द्वारा साधन करके परमानन्द में निमग्न हैं, अतः आप लोगों की हम हमारी जैसी स्थिति देखना चाहते हैं । आप लोग भी यहां आकर परमानन्द को प्राप्त करें और अपने नर जन्म को सफल बनावें ।
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पत्र में लिखित उक्त समाचारों को सुनकर बनवारी गिरि कुछ संकोच में पड़ गये और बोले - मेरी तो दर्शन करने की शक्ति भी नहीं रही है । मैं जाकर क्या करूँगा ? हरिगिरि ने कहा - दर्शन से ही कल्याण नहीं होता है । कल्याण तो ज्ञान द्वारा होता है और वचन सुनने से होता है, अतः आप को अवश्य चलना चाहिये ।
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आप को कोई कष्ट तो हम नहीं होने देंगे । तब बनवारीगिरिजी ने कहा - अच्छा मैं चलूंगा किंतु दादूजी के पास जाते ही मेरी आँखों में देखने की शक्ति आ जायगी तो मैं भी दादूजी का ही शिष्य हो जाऊंगा । फिर वे हरयाणा प्रांत से चलकर राजस्थान के साँभर नगर में आये ।
(क्रमशः)
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