daduji
卐 सत्यराम सा 卐
इन्द्री के आधीन मन, जीव जंत सब जाचै ।
तिणे तिणे के आगे दादू, तिहुं लोक फिर नाचै ॥
इंद्री अपने वश करै, सो काहे जाचन जाइ ।
दादू सुस्थिर आत्मा, आसन बैसै आइ ॥
===================
@Durgesh Tripathi ~ Jay ho
हमारे शरीर की कुछ सुनिश्चित आदतें हैं। ध्यान हमारे शरीर की आदत नहीं है। ध्यान इसलिए कठिन मालूम होता है क्योँकि शरीर की बंधी हुई आदतों को तोड़कर उसमेँ नई व्यवस्था निर्मित करनी होती है । शरीर की बंधी हुई आदतें कौन सी हैं और उन्हेँ कैसे तोड़ा जा सकता है इस पर पढ़िए ओशो का मार्गदर्शन जो उन्होँने एक ध्यान शिविर में साधकोँ को किया है।
.
(१) हमारे शरीर की कुछ सुनिश्चित आदतें हैं। ध्यान हमारे शरीर की आदत नहीं है। ध्यान हमारे लिए नया काम है। शरीर के बंधे हुए एसोसिएशन हैं। शरीर की बंधी हुई आदतों को अगर कहीं से तोड़ दिया जाए, तो शरीर और मन नई आदत को पकड़ने में आसानी पाते हैं। कई दफे तो आप हैरान होंगे कि अगर आप चिंतित होते हैं और सिर खुजलाने लगते हैं, अगर आपका हाथ नीचे बांध दिया जाए और आप सिर न खुजला पाएं, तो आप चिंतित न हो सकेंगे। आप कहेंगे कि सिर खुजलाने से चिंता का क्या संबंध है ? एसोसिएशन है। शरीर की निश्चित आदत हो गई है। वह अपनी पूरी की पूरी अपनी आदत को, अपनी व्यवस्था को पकड़कर पूरा कर लेता है।
.
(२) शरीर की जो सबसे गहरी आदत है, वह भोजन है- सबसे गहरी, क्योंकि उसके बिना तो जीवन नहीं हो सकता है। तो डीप मोस्ट, डीपेस्ट। ध्यान रहे, सेक्स से भी ज्यादा गहरी। जीवन में जितनी भी गहराइयां हैं हमारे, उनमें सबसे ज्यादा गहरी आदत भोजन है। जन्म के पहले दिन से शुरू होती है और मरने के आखिरी दिन तक चलती है।
.
जीवन का अस्तित्व उस पर खड़ा है, शरीर उस पर खड़ा है। इसलिए अगर आपको अपने मन और शरीर की आदतें बदलनी हैं, तो उसकी गहरी आदत को एकदम शिथिल कर दें। उसके शिथिल होते से ही शरीर का जो कल तक का इंतजाम था, वह सब अस्तव्यस्त हो जाएगा। और उसकी अस्तव्यस्त हालत में आप नई दिशा में प्रवेश करने में आसानी पाएंगे, अन्यथा आप आसानी नहीं पाएंगे।
.
तो जितना कम बन सके ! किसी को उपवास करना हो, उपवास कर सकता है। किसी को एक बार भोजन लेना हो, एक बार ले सकता है। आपकी मर्जी पर है, नियम बनाने की जरूरत नहीं है। अपनी मर्जी से चुपचाप जितना कम से कम-न्यूनतम, मिनिमम-इसका खयाल रखें। तो दूसरी बात, स्वल्प-आहार।
(३) तीसरी बात - एकाग्रता। चौबीस घंटे में आप गहरी श्वास लेंगे ही, साथ ही श्वास पर ध्यान भी रखें, तो एकाग्रता सहज फलित हो जाएगी। रास्ते पर चल रहे हैं, श्वास ले रहे हैं, श्वास बाहर से भीतर गई, तो देखते रहें, बी अटेंटिव। देखते रहें कि श्वास भीतर गई। फिर श्वास बाहर जा रही है, तो बाहर गई। भीतर गई, फिर बाहर गई।
.
ध्यान रखेंगे तो गहरा भी ले पाएंगे। नहीं तो जैसे ही भूलेंगे वैसे ही श्वास धीमी हो जाएगी। और गहरा लेते रहेंगे तो ध्यान भी रख पाएंगे, क्योंकि गहरा लेने के लिए ध्यान रखना ही पड़ेगा। तो ध्यान को श्वास के साथ जोड़ लें। कुछ काम करते वक्त अगर ऐसा लगे कि अभी ध्यान श्वास पर नहीं रखा जा सकता है, तो जिन कामों को करते वक्त ऐसा लगे कि अभी ध्यान श्वास पर नहीं रखा जा सकता, तब उन कामों पर कनसनट्रेशन रखें, उन कामों पर एकाग्र रहें।
.
खाना खा रहे हैं तो खाने को पूरी एकाग्रता से खाएं। एक-एक कौर पूरे ध्यानपूर्वक उठाएं। स्नान कर रहे हैं, तो पानी का एक-एक कतरा भी ऊपर पड़े तो पूरे ध्यानपूर्वक। रास्ते पर चल रहे हैं, तो पैर एक-एक उठे तो ध्यानपूर्वक। तो तीसरी बात, जो भी करें, बहुत ध्यानपूर्वक, बहुत एकाग्र चित्त से करें। और ज्यादातर तो श्वास पर ही एकाग्रता रखें, क्योंकि वह चौबीस घंटे चलने वाली चीज है।
.
न तो चौबीस घंटे खाना खा सकते हैं, न स्नान कर सकते हैं, न चल सकते हैं। श्वास चौबीस घंटे चलेगी। उस पर चौबीस घंटे ध्यान रखा जा सकता है। उस पर ध्यान रखें। भूल जाएं दुनिया में कुछ और हो रहा है। बस एक ही काम हो रहा है कि श्वास भीतर आ रही है और श्वास बाहर जा रही है। बस, इस श्वास का बाहर और भीतर आना आपके लिए माला की गुरिया बन जाए, इस पर ही ध्यान को ले जाएं। तीसरा सूत्र।
.
(४) चौथा सूत्र: इंद्रिय-उपवास, सेंस डिप्राइवेशन। जो लोग पूरे दिन मौन रख सकें, वे पूरे दिन के लिए मौन हो जाएं। जिनको कठिनाई मालूम पड़े, वे भी टेलीग्रैफिक हो जाएं। जो भी बोलें, तो समझें कि एक-एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है। तो दिन में दस-बीस शब्द से ज्यादा नहीं। बहुत जरूरी मालूम पड़े, जान पर ही आ बने, तो ही बोलें।
.
जो पूरा मौन रख सकें, उनके फायदे का तो कोई हिसाब नहीं। पूरा मौन रख सकें, कोई कठिनाई नहीं है। एक कागज-पेंसिल रख लें, जरूरत पड़े तो लिखकर बता दें-कुछ जरूरत पड़े तो। पूरे मौन हो जाएं। मौन से आपकी सारी शक्ति भीतर इकट्ठी हो जाएगी, जिसे हमें ध्यान में आगे ले जाना है।
.
आदमी की कोई आधे से ज्यादा शक्ति उसके शब्द ले जाते हैं। शब्द को तो बिलकुल छोड़ दें। तो खयाल कर लें, जिसकी जितनी सामर्थ्य हो उतना मौन हो जाए। और इतना तो ध्यान ही रखें कि आपके द्वारा किसी का मौन न टूटे। आपका टूटे, आपकी किस्मत, आप जिम्मेवार। लेकिन आपके द्वारा किसी का न टूटे। अकारण बातें किसी से न पूछें। अकारण जिज्ञासाएं न करें, व्यर्थ के सवाल न उठाएं।
.
किसी को बातचीत में डालने की आप कोशिश न करें। सहयोगी बनें दूसरे को मौन करवाने में। कोई पूछे तो उसको भी मौन करने का इशारा दे दें। उसे भी याद दिला दें कि मौन रहना है। बातचीत छोड़ दें बिलकुल सात दिन। फिर बाद में करिए, पीछे तो आपने की है बहुत। सात दिन बिलकुल छोड़ दें। जिससे जितना बन सके। पूरा बन सके, बहुत ही हितकर होगा। फिर आपको कहने को नहीं बचेगा कि ध्यान नहीं होता है।
.
मैं जो पांच बातें आपसे कहने जा रहा हूं, वे आप पूरी कर लेते हैं, तो आपको कहने का कारण नहीं आएगा कि ध्यान नहीं होता है। मौन रखें। न्यूनतम। जिनसे न बन सके, कमजोर हों, संकल्पहीन हों, मन दुर्बल हो, बुद्धि कमजोर हो, वे थोड़ा-थोड़ा बोलकर चलाएं। जिनमें थोड़ी भी बुद्धिमत्ता हो, संकल्प हो, शक्ति हो, थोड़ा भी अपने पर भरोसा हो, वे बिलकुल चुप हो जाएं।
.
इंद्रिय-उपवास में पहला मौन।
दूसरा, आपकी आंख के लिए विशेष पट्टियां बनाई हैं। वे पट्टियां आप ले लेंगे और कल सुबह से उनका प्रयोग शुरू करें। पूरी आंख को बांध लेना है। आंख ही आपको बाहर ले जाने का द्वार है। जितनी ज्यादा देर बांध रख सकें उतना अच्छा है। जब भी खाली बैठे हैं आंख पर पट्टी बंधी रहने दें। उससे दूसरे दिखाई भी नहीं पड़ेंगे, बातचीत का भी मौका नहीं आएगा।
.
और आपको अंधा मानकर दूसरे भी छोड़ देंगे कि ठीक है, जाने दें, व्यर्थ उनको परेशान न करें। अंधे हो जाएं। मौन होना तो आपने सुना ही है न, तो अंधे भी हो जाएं। मौन होना भी एक तरह की मुक्ति है और अंधा होना और भी गहरी। क्योंकि आंख ही हमें चौबीस घंटे बाहर दौड़ा रही है। आंख के बंद होते से ही आप पाएंगे, बाहर जाने का उपाय न रहा।
.
भीतर चेतना वर्तुलाकार घूमने लगेगी। तो आंख पर पट्टी बांध लें। चलते वक्त थोड़ा सा ऊपर सरका लें, नीचे देखें, बस। चलते वक्त थोड़ा ऊपर सरका लें और नीचे देखें, एक चार फीट आपको दिखाई पड़ता रहे रास्ता, उतना काफी है। उसे बांधकर ही पूरा वक्त गुजार दें। जो रात उसको बांधकर ही सो सकें, वे बांधकर ही सोएं।
.
जिनको अड़चन मालूम हो, वे निकाल दें। बांधकर सोएंगे, नींद की गहराई में फर्क पड़ेगा। यह जो पट्टी है, वह आप बाकी समय तो बांधे ही रखेंगे। सुबह यहां जब ध्यान होगा, तब पट्टी बंधी रहेगी सुबह के ध्यान में। दोपहर के मौन में पट्टी खुली रहेगी, लेकिन आप वहां से पट्टी बांधकर ही आएंगे। यहां चुपचाप पट्टी खोलकर रख लेंगे। दोपहर के घंटेभर के मौन में पट्टी खुली रहेगी। रात भी आप पट्टी बांधकर ही आएंगे। फिर रात के ध्यान में भी पट्टी खुली रहेगी।
.
सुबह जब मैं बोलूंगा तब आपकी पट्टी खुली रहेगी, दोपहर मौन में खुली रहेगी, रात के ध्यान में खुली रहेगी। इतना आपकी आंख के लिए मौका दूंगा। यह भी मौका इसलिए दूंगा कि यह भी आपको भीतर ले जाने में सहयोगी बन सके तभी आपकी आंख को बाहर देखने का मौका देना है, अन्यथा आपकी आंख को बंद ही रखना है। और सात दिन में आप हैरान हो जाएंगे कि मन के कितने तनाव आंख के बंद रहने से विदा हो जाते हैं, जिसकी आप अभी कल्पना नहीं कर सकते।
.
मन के अधिकतम तनाव आंख से प्रवेश करते हैं और आंख का तनाव ही मन के स्नायुओं के लिए सबसे बड़े तनाव का कारण है। अगर आंख शांत और शिथिल और रिलैक्स हो जाए, तो मस्तिष्क के निन्यानबे प्रतिशत रोग विदा हो जाते हैं। तो इसका आप पूरे ध्यानपूर्वक इसका उपयोग करना है। और ऐसा नहीं कि उसमें बचाव करें। बचाव करें तो मेरा कोई हर्जा नहीं है, बचाव से आपका हर्जा होगा।
.
ध्यान यही रखना है कि अधिकतम आपको बिलकुल ब्लाइंड हो जाना है, आप बिलकुल अंधे हो गए हैं। आंख है ही नहीं। सात दिन के लिए उसे छुट्टी दे देना है। सात दिन के बाद आप पाएंगे कि आंख ऐसी शीतल हो सकती है और आंख की शीतलता के पीछे इतने आनंद के रस झरने बह सकते हैं, यह आपकी कल्पना में अभी नहीं हो सकता। आंख की पट्टी के साथ ही आपके कान के लिए भी कपास मिलेगा। वह दोनों कान पर लगा देना है। कान को भी छुट्टी दे देनी है।
.
आंख, कान और मुंह तीनों को छुट्टी मिल जाए, तो आपकी इंद्रियों का उपवास हो जाता है। उसी पट्टी के नीचे कान को भी बंद करके ऊपर से बांध लेना है। तो दूसरे आपके मौन में भी बाधा नहीं दे सकेंगे, देना भी चाहें तो भी नहीं दे सकेंगे। आप भी देना चाहें तो नहीं दे सकेंगे। क्योंकि दूसरे को अवसर देने का पाप भी नहीं देना चाहिए। आपके कान खुले हैं, तो किसी को बोलने का टेंप्टेशन होता है। कान ही बंद हैं, वह बोले भी तो भी नहीं सुन सकते, तो टेंप्टेशन नहीं होता। तो कान भी बंद रखने हैं। यह है इंद्रिय-उपवास।
ईशावास् —
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें