रविवार, 5 अप्रैल 2015

*= वैराठ गुफा में तपस्या =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*नवम विन्दु*
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*= वैराठ गुफा में तपस्या =*
वहां से विचरते हुये भीमसिंह विराट् नगर को आये । वहां के पर्वत की गुफा में एक वर्ष तक भगवद् भजन करते हुये निवास किया । यहां ही इनको दादूजी के साँभर निवास का समाचार मिला । साँभर में मुसलमानों ने ज्यों - ज्यों दादूजी को दुःख दिया त्यों - त्यों भगवान् ने उनकी अद्भुत रीति से रक्षा की । रक्षा के समय जो - जो चमत्कार प्रभु ने दिखाये उनसे दादूजी की ख्याति दूर - दूर तक हो गई थी ।
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जब भीमसिंह और प्रहलादजी को पूरा पता मिल गया कि दादूजी साँभर में ही हैं, तब वे दोनों वैराठ से चलकर साँभर आये । साँभर में दादूजी का दर्शन करके दोनों अति प्रसन्न हुये । दोनों ने पास आकर साष्टांग दंडवत प्रणाम किया । फिर हाथ जोड़ के दोनों सामने बैठ गये । दादूजी ने पूछा, आप लोग कहां से आये हैं ?
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भीमसिंहजी ने अपनी कथा सुनाकर कहा - ये मेरे पुरोहित हैं, मैं वृन्दावन में चतुरानागाजी का शिष्य होने गया था, उन्होंने आपका शिष्य होने की आज्ञा दी और कहा - वे साँभर में आने वाले हैं, तुमको उनका दर्शन साँभर में होगा । फिर हम दोनों वैराठ की गुफा में एक वर्ष रहे । वहां आपका पता लगा कि दादूजी महाराज सांभर में पधार गये, तब हम दोनों ही आपकी चरण सेवा में आये हैं । अब आप हम लोगों पर कृपा करें ।
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*= भीमसिंहजी का दादूजी का शिष्य होना =*
दादूजी ने कहा - क्या कृपा चाहते हैं ? भीमसिंह मुझे अपना शिष्य करके कृतार्थ कीजिये । दादूजी ने कहा - आप तो राज - परिवार में पले हुये हैं । साधू धर्म का निर्वाह कैसे करेंगे ।
*दादू मारग साधु का, खरा दुहेला जान ।*
*जीवत - मृतक हो चले, राम नाम निशान ॥*
*दादू मारग कठिन है, जीवत चले न कोय ।*
*सोई चल है बापरा, जीवत मृतक होय ॥*
*कायर काम न आव ही, यहु शूरे का खेत ।*
*तन मन सौंपे राम को, दादू शीश सहेत ॥*
*मन ताज़ी चेतन चढ़े, ल्यो की करे लगाम ।*
*शब्द गुरु का ताजणा, कोई पहुँचे साधु सुजान ॥*
यह सब सुनकर भी भीमसिंहजी ने कहा - यह सब तो आपकी कृपा से हो जायगा, आप मुझे शिष्य रूप से अपनाइये । मैं आपका ही शिष्य हूंगा ।
(क्रमशः)

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