मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

*= सुन्दरदासजी को भविष्य बताना =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*नवम विन्दु*
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*= सुन्दरदासजी को भविष्य बताना =*
फिर दादूजी महाराज ने सुन्दरदासजी को कहा - सुन्दरदासजी ! तुम तो गोपीचंद, भरतरी, गोरक्षनाथ आदि के सामान चिरजीवी होंगे । अतः सदा निर्गुण भक्ति करते हुये प्रायः गुप्त ही रहना । जो पुण्यवान और दर्शन का अधिकारी हो, उसको दर्शन देकर कृतार्थ करते रहना -
*पुन्यवान को दर्शन दीज्यो,*
*नहिं तो गुप्त जगत में रहिज्यो ।*
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सुन्दरदासजी ने पूछा - भगवन् ! चिरजीवी होने का साधन क्या है ? दादूजी बोले - 
*नाद बिन्दु से घट भरे, सो जोगी जीवे ।*
*दादू काहे को मरे, रामरस पीवे ॥* 
सुन्दरदासजी ने उक्त साखी में कथित साधना आरंभ कर दी । साँभर में लगभग एक वर्ष रहे तब तक सुन्दरदासजी सत्संग और भोजन करके भैराणा की गुफा में जाकर भजन करते थे ।
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प्रतिदिन सत्संग के समय प्रातःकाल आ जाते थे और भोजन करके चले जाते थे । फिर प्रहलादजी भी सुन्दरदासजी के शिष्य बनकर प्रहलाददासजी कहलाने लग गये । दोनों ही इच्छानुसार साँभर में सत्संग करके फिर दादूजी महराज की आज्ञा लेकर घाटड़ा चले गये और गुरुदेव दादूजी की बताई हुई पद्धति से निर्गुण भक्ति करने लगे । बड़े सुन्दरदासजी ५२ शिष्यों में हैं ।
(क्रमशः)

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