#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुनाइ ।
जानो कर दीपक दिया, भ्रम तिमिर सब जाइ ॥
दादू वाणी प्रेम की, कमल विकासै होहि ।
साधु शब्द माता कहैं, तिन शब्दों मोह्या मोहि ॥
दादू हरि भुरकी वाणी साधु की, सो परियो मेरे शीश ।
छूटे माया मोह तैं, प्रेम भजन जगदीश ॥
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**सत्संग की महिमा और सुनने की कला**
सत्संग का मतलब है किसी सत्य को पाए संत का संग करना । संग का अर्थ केवल उनके शब्दो को ही सुनना मात्र नही है, बल्कि उनके शब्दो के बीच जो निःशब्द है उसकी अनुभूति करना है, शब्दो के बीच जो खाली स्थान है उसको पीना भर है, उनकी मौजूदगी को पीना, उनकी अध्यात्मिक तरंगो को अपने भीतर प्रवेश करने देना ।
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सत्संग का वास्तविक लाभ वो ही ले पाते है जो सत्संग सुनने की कला जानते है । जो मौन होकर के गुरु के पास बैठते है बिना किसी विचार के, बिना कोई मान्यता लेकर, बिना जो पूर्व मे पढ़ा है उसको लेकर और गुरु के पास बिना अपने अहंकार के बैठने की क्षमता रखते है वो गुरु के प्रसाद के अधिकारी हो जाते है और गुरु का अनुभव ही उसका अनुभव हो जाता है केवल सत्संग सुनने की कला मात्र से आप सत्य को उपलब्ध हो सकते हो ।"---
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