सोमवार, 13 अप्रैल 2015

*= शिष्य बखनाजी =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= दशम विन्दु =*
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*= शिष्य बखनाजी =*
एक समय दादूजी रमते हुए नारायणा नगर में पधारे थे -
"रमते नगर नरनैं आये ॥२४॥"(जनगोपाल वि. - - १२)
दादूजी अपने कुछ शिष्यों के साथ मार्ग से जा रहे थे । फाल्गुण मास था । मार्ग में बखना को होली के गीत गाते देखा तथा सुन्दर कण्ठों की आवाज सुनकर और इनका सुन्दर शरीर देखकर -
बखनों होली गावत देख्यो, गुरुदादू अपनौं कर लेख्यो"
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बखना पर कृपा करके दादूजी ने कहा - भैया ! जिन भगवान् ने तुम्हारा ऐसा सुन्दर शरीर रचा है उन राम निरंजन का गुण गाओ, ये गन्दे गीत क्यों गाते हो । यह सुनकर बखनाजी ने दादूजी की ओर देखा, तब दादूजी ने अपने मन को निमित्त बना कर यह पद बोला -
*मन मूरखा ! तैं योंही जन्म गमायो,*
*सांई केरी सेवा न किन्हीं,*
*इहि कलि काहे को आयो ॥टेक॥*
*जिन बातन तेरो छूटक नांहीं,*
*सोइ मन तेरे भायो ।*
*कामी ह्वै बिषया संग लागो,*
*रोम - रोम लपटायो ॥१॥*
*कुछ इक चेत बिचारी देखो,*
*कहा पाप जिय लायो ।*
*दादू दास भजन कर लीजे,*
*स्वप्ने जग डहकायो ॥२॥*
उक्त पद सुनकर बखना दादूजी के चरणों में आ पड़ा और बोला - भगवन् आपने बड़ी कृपा की जो मेरे अज्ञानांधकार को नष्ट करने वाला पद सुनाया । अब आप मुझे अपने ध्यान और ज्ञान को बताने की कृपा करें ।
(क्रमशः)

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