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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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*नोरंगपुरे पधारना*
दादूजी मार्ग द्वारा उनके पास आये तब उन सबने चरणों में पड़कर प्रार्थना कि । प्रभो ! हमारे ग्राम में पधारकर के ही आगे पधारें । हम लोगों का ऐसा ही भाव है । आपके पधारने से हमारा ग्राम और घर पवित्र हो जायेंगे । वे लोग अति आग्रह और प्रेम से नोरंगपुरा ले गये । वहां कुछ दिन दादूजी ने शिष्य मंडली सहित निवास करते हुये भक्ति ज्ञानादि का उपदेश करके वहां के भक्तों को कृतार्थ किया ।
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फिर त्योध के गौड रायमल को पता लगा तब उन्होंने मार्ग में मिलकर चरणों में प्रणाम की और त्योध पधारने का अति आग्रह किया । त्योध पधारना - महात्मा तो दयालु होते ही हैं, इससे त्योध पधारे । "संत चलन ज्यों सुरसरि धारा" इस वचन के अनुसार भक्तों की भक्ति के अधीन होकर त्योध की ओर लौट गये, आमेर का मार्ग छोड़ दिया । त्योध में ग्राम के बाहर पूर्व की ओर जल और छाया की सुविधा तथा शुद्ध भूमि में रहे । रायमल आदि भक्तों को सुन्दर उपदेश देकर कृतार्थ किया ।
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शिष्य बड़े गोपालदास - त्योध से चलकर विचरते हुये जोबनेर पधारे । जोबनेर में दादूजी का आना सुनकर वहां के गोपाल भक्त अति प्रसन्न हुये । और अपने साथियों के साथ दादूजी के सामने आये और अच्छे स्थान पर ठहराया और मंडली सहित दादूजी की अच्छी सेवा की ।
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फिर दादूजी ने भक्त गोपाल को इस पद से उपदेश दिया -
"सो तत्त्व सहजैं सुषुमन कहना,
साँच पकड़ मन जुग - जुग रहना ॥टेक॥
प्रेम प्रीति कर नीका राखे,
बारंबार सहज नर भाखे ॥१॥
मुख हिरदय सो सहज सँभारे,
तिहिं तत्त्व रहणा कदेन बिसारे ॥२॥
अंतर सोई नीका जाणे,
निमेष न बिसरे ब्रह्म बखाणे ॥३॥
सोइ सुजाण सुधारस पीवे,
दादू देख जुगे जुगे जीवे ॥४॥
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अर्थ - जिस तत्त्व के विषय में योगियों का कहना है - सुषुम्ना नाड़ी के चलने पर शनैः - शनैः साधन की प्रौढावस्था में प्राप्त होता है । हे मन ! तुझे उसी सत्य ब्रह्म तत्त्व को प्रतिक्षण पकड़े रहना चाहिये । योगी नर प्रीति पूर्वक बारंबार सहजावस्था में जाकर हृदय में अच्छी प्रकार प्रेम से उसका ध्यान करता है और सहज स्वरूप का नाम मुख से उच्चारण करता है, मन में स्मरण करता है, उस तत्त्व में वृत्ति रखना कभी भी नहीं भूलता, ज्ञान द्वारा संशय - विपर्य्य रहित अच्छी प्रकार बुद्धि में जानता है । एक निमेष मात्र भी उसे भूलता नहीं, ब्रह्म का ही प्रवचन करता रहता है, वही बुद्धिमान्, इस प्रकार स्मरण - सुधा रस का पान करते हुये उस ब्रह्म तत्त्व का साक्षात्कार करके ब्रह्मरूप से प्रतियुग में जीवित रहता है ।
(क्रमशः)
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लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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*नोरंगपुरे पधारना*
दादूजी मार्ग द्वारा उनके पास आये तब उन सबने चरणों में पड़कर प्रार्थना कि । प्रभो ! हमारे ग्राम में पधारकर के ही आगे पधारें । हम लोगों का ऐसा ही भाव है । आपके पधारने से हमारा ग्राम और घर पवित्र हो जायेंगे । वे लोग अति आग्रह और प्रेम से नोरंगपुरा ले गये । वहां कुछ दिन दादूजी ने शिष्य मंडली सहित निवास करते हुये भक्ति ज्ञानादि का उपदेश करके वहां के भक्तों को कृतार्थ किया ।
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फिर त्योध के गौड रायमल को पता लगा तब उन्होंने मार्ग में मिलकर चरणों में प्रणाम की और त्योध पधारने का अति आग्रह किया । त्योध पधारना - महात्मा तो दयालु होते ही हैं, इससे त्योध पधारे । "संत चलन ज्यों सुरसरि धारा" इस वचन के अनुसार भक्तों की भक्ति के अधीन होकर त्योध की ओर लौट गये, आमेर का मार्ग छोड़ दिया । त्योध में ग्राम के बाहर पूर्व की ओर जल और छाया की सुविधा तथा शुद्ध भूमि में रहे । रायमल आदि भक्तों को सुन्दर उपदेश देकर कृतार्थ किया ।
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शिष्य बड़े गोपालदास - त्योध से चलकर विचरते हुये जोबनेर पधारे । जोबनेर में दादूजी का आना सुनकर वहां के गोपाल भक्त अति प्रसन्न हुये । और अपने साथियों के साथ दादूजी के सामने आये और अच्छे स्थान पर ठहराया और मंडली सहित दादूजी की अच्छी सेवा की ।
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फिर दादूजी ने भक्त गोपाल को इस पद से उपदेश दिया -
"सो तत्त्व सहजैं सुषुमन कहना,
साँच पकड़ मन जुग - जुग रहना ॥टेक॥
प्रेम प्रीति कर नीका राखे,
बारंबार सहज नर भाखे ॥१॥
मुख हिरदय सो सहज सँभारे,
तिहिं तत्त्व रहणा कदेन बिसारे ॥२॥
अंतर सोई नीका जाणे,
निमेष न बिसरे ब्रह्म बखाणे ॥३॥
सोइ सुजाण सुधारस पीवे,
दादू देख जुगे जुगे जीवे ॥४॥
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अर्थ - जिस तत्त्व के विषय में योगियों का कहना है - सुषुम्ना नाड़ी के चलने पर शनैः - शनैः साधन की प्रौढावस्था में प्राप्त होता है । हे मन ! तुझे उसी सत्य ब्रह्म तत्त्व को प्रतिक्षण पकड़े रहना चाहिये । योगी नर प्रीति पूर्वक बारंबार सहजावस्था में जाकर हृदय में अच्छी प्रकार प्रेम से उसका ध्यान करता है और सहज स्वरूप का नाम मुख से उच्चारण करता है, मन में स्मरण करता है, उस तत्त्व में वृत्ति रखना कभी भी नहीं भूलता, ज्ञान द्वारा संशय - विपर्य्य रहित अच्छी प्रकार बुद्धि में जानता है । एक निमेष मात्र भी उसे भूलता नहीं, ब्रह्म का ही प्रवचन करता रहता है, वही बुद्धिमान्, इस प्रकार स्मरण - सुधा रस का पान करते हुये उस ब्रह्म तत्त्व का साक्षात्कार करके ब्रह्मरूप से प्रतियुग में जीवित रहता है ।
(क्रमशः)
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