शुक्रवार, 29 मई 2015

२५ . सांख्य ज्ञांन को अंग ~ १५



‪#‎daduji‬
|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २५ . सांख्य ज्ञांन को अंग =*
*एक घट मांहिं तौ सुगंध जल भरि राख्यौ,* 
*एक घट मांहिं तौ दुर्गन्ध जल भर्यौ है ।* 
*एक घट मांहि पुनि गंगोदक राख्यौ आंन,* 
*एक घट मांहिं आंनि मदिराऊ कर्यौ है ॥* 
*एक घृत एक तेल एक मांहिं लघुनीति,* 
*सबही मैं सविता कौ प्रतिबिम्ब पर्यौ है ।* 
*तैसैं हौ सुन्दर ऊँच नीच मध्य एक ब्रह्म,* 
*देह भेद देखि भिन्न भिन्न नांम धर्यौ है ॥१५॥* 
जैसे कहीं अनेक घटे रखे हुए हों; उनमें किसी में सुगन्धमय जल हो, किसी में दुर्गन्धमय; 
एक घट में गंगाजल भरा हो, दूसरा में मद्य, 
एक में घी, एक में तैल तथा एक में मूत्र(लधुनीति) भरा हो । इन सब में सूर्य का प्रकाश समान रूप से ही पड़ता है; सूर्य का कहीं पक्षपात नहीं होता । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - ऊँच, नीच, मध्यम शरीरों में ब्रह्म एक ही है; परन्तु की भिन्नता के कारण, उनको विविध नामों से व्यवहार में बुलाया जाता है ॥१५॥ 
(क्रमशः)

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