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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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*नोरंगपुरे पधारना*
उक्त उपदेश श्रवण करके गोपाल भक्त दादूजी के शिष्य बन गये और बड़े गोपालदास के नाम से ५२ शिष्यों में प्रसिद्ध हुये । गोपाल भक्त ने कुछ दिन घर पर रहकर ही भजन किया था किंतु फिर वे विरक्त होकर घर से निकल गये थे और अंत में नारायणा ग्राम 'दादू धाम' में रहने लग गये थे । शिष्य टीकमजी - जोबनेर से दादूजी शिष्य मंडली के साथ कालख होते हुये धाणके ग्राम में पधारे । वहां के कुम्भावत जाति के टीकम नामक भक्त शिल्पकला, पत्थर की मूर्ति आदि चित्रकला में अति निपुण थे । वे दादूजी के दर्शन करने आये थे । उनको शुद्ध अधिकारी जानकर दादूजी ने इस पद से उपदेश दिया -
*"बार बार तन नहीं बावरे,*
*काहे को बाद गमावे रे ।*
*विनशत बार कछु नहिं लागे,*
*बहुर कहां कोइ पावेरे ॥टेक॥*
*तेरे भाग बड़े भाव घर कीन्हा,*
*क्यों चित्र बनावे रे ।*
*सो तू लेय विषय में डारे,*
*कंचन छार मिलावे रे ॥१॥*
*तू मत जाने बहुर पाइये,*
*अब के जनि डहकावे रे ।*
*तीन लोक की पूंजी तेरे,*
*बनजि बेगि सो आवे रे ॥२॥*
*जब लग घाट में श्वास बास है,*
*तब लग काहे न धावे रे ।*
*दादू तन धर नाम न लीन्हा,*
*सो प्राणी पछतावे रे ॥३॥"*
(क्रमशः)
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