#daduji
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
अथ अध्याय ४ ~
६ आचार्य कृष्णदेव जी ~
कृष्णदेवजी को जयसिंह का पत्र ~ राजा जयसिंह की उक्त बात सुनकर बुद्धिमान मंत्री ने कहा महाराज ! वे तो सच्चे संत हैं । उनके मन में राग द्वेष को लेश भी नहीं है । आप उनको पुन: बुला कर क्षमा याचना करें तो हो सकता है आप का यह रोग उनकी कृपा से मिट जाय । तब राजा ने कहा - फिर तुम ही बुलाने जाओ । मंत्री ने कहा - मैं अवश्य जाऊंगा, किन्तु आप मुझे अपने भावों का पत्र लिखकर अवश्य दें । वे आपके शुद्ध भावों को देखकर अवश्य दया करेंगे । मेरे को तो यह द्द़ढ विश्वास है । फिर सवाई जयसिंह जयपुर नरेश ने निम्न प्रकार पत्र लिखा । श्रीमान् परम श्रद्धेय, परम विरक्त, भजनानन्दी गुरुवर्य अनन्त श्री नारायणा दादूधाम के आचार्य श्री कृष्णदेवजी महाराज के चरण कमलों में आपके सेवक सवाई जयसिंह द्वितीय जयपुर नरेश का साष्टांग दंडवत पूर्वक सत्यराम स्वीकार हो । प्रभो ! आपको मैंने बिना जाने ही कष्ट दिया है । आपके जयपुर राज्य से बाहर जाने पर यहां कई विचित्र घटनायें घटित हुई है और मेरे शरीर में भी भंयकर रोग हो रहा है और बहुत चिकित्सा कराने पर भी नहीं मिट रहा है ।
भगवन् ! दादू पंथ के आद्याचार्य दादूजी महाराज से लेकर आज तक दादूपंथ के संतों की हमारे वंश पर पूर्ण कृपा ही रही है और हमारे वंश के अनेक सज्जन जैसे - हरिसिंह हापा, गुणसिंह, चतुरसिंह, श्यामसिंह आदि दादूपंथ में दीक्षा लेकर संत भी बने हैं । अत: दादूपंथ पर हमारे वंशवालों की अटूट श्रद्धा रही है और आपके गुरु परंपरा के संतों की हमारे वंश पर महती कृपा रही है । हमारे वंश के लोगों में केवल एक मैंने ही गलती की है और वह उद्वेग में आकर गलता के महन्त के कहने से की है किन्तु अब आप के प्रति मेरे मन में कुछ भी दुर्भाव नहीं है, सद्भाव ही है । यह आप स्वयं देख सकते हैं - कारण आप तो उच्चकोटि के संत हैं, दूसरे के मन की बात भी जान ही सकते हैं ! अत: मैं अपने मन के भाव आप से छिपा भी कैसे सकता हूँ । यह सत्य ही लिख रहा हूँ कि इस समय मेरे मन में आपके प्रति अति श्रद्धा है । अत: आप अब मेरी गलती को क्षमा करके नारायणा दादूधाम में पधार कर देश को पवित्र करें और मेरा रोग भी नष्ट करने की कृपा अवश्य करें ।
अन्त में आपको अनन्त प्रणाम ।
आप का सेवक सवाई जयसिंह नरेश जयपुर ।
(क्रमशः)
卐 सत्यराम सा 卐
जवाब देंहटाएं