सोमवार, 4 मई 2015

= १४५ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
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सजीवन
देह रहै संसार में, जीव राम के पास ।
दादू कुछ व्यापै नहीं, काल झाल दुख त्रास ॥२७॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्मनिष्ठ मुक्त - पुरुषों का शरीर तो दुनियां में दिखता है, परन्तु आभास अन्तःकरण कूटस्थ ब्रह्म - स्वरूप में लीन रहता है । संसार के बन्धन रूप काम - क्रोध की ज्वाला और जन्म - मरण रूप दुःख और तीन ताप की त्रास, इन सबसे वे मुक्त रहते हैं ॥२७॥
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काया की संगति तजै, बैठा हरि पद मांहि ।
दादू निर्भय ह्वै रहै, कोई गुण व्यापै नांहि ॥२८॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब विचार द्वारा ब्रह्म अभ्यास करते - करते शरीर का अध्यास मन छोड़ देता है, तब शरीर के किसी प्रकार के गुण - विकार मन में नहीं व्याप्त होते हैं । उस अवस्था में मन काल - कर्म के भय से मुक्त होकर ब्रह्म - स्वरूप में अभेद हो जाता है ॥२८॥
(श्री दादूवाणी ~ विचार का अंग)

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