मंगलवार, 26 मई 2015

‪#‎daduji‬
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अथ अध्याय ४ ~ 
६ आचार्य कृष्णदेव जी ~ 
कृष्णदेवजी को जयसिंह का पत्र ~ 
उक्त प्रकार नम्रता पूर्ण पत्र लिख कर जयसिंह ने अपने मंत्री को दिया । और कहा - तुम भी ऐसा ही प्रयत्न करना जिससे गुरुदेव नारायणाधाम में पधार सकें । फिर जयपुर नरेश सवाई जयसिंह का पत्र लेकर मंत्री मेडता नगर में जाकर बेबचा सरोवर पर आचार्य कृष्णदेव जी के पास गया । कृष्णदेव जी महाराज ब्रह्म - भजन में संलग्न थे । मंत्री ने ‘सत्यराम’ बोलकर उनको अति श्रद्धा पूर्वक साष्टांग दंडवत की फिर हाथ जोड कर सामने बैठ गया । तब कृष्णदेवजी महाराज ने पूछा - रामजी कहां से आये हो ? मंत्री ने हाथ - जोडकर कहा - भगवन् ! मैं जयपुर नरेश सवाई जयसिंह का मंत्री हूँ । उन्होंने मुझे आपको नारायणा दादूधाम पर लाने के लिये भेजा है और स्वयं ने पत्र लिख कर मेरे द्वारा आपके पास भेजा है । यह कहकर मंत्री ने पत्र अपनी जेब से निकाला और महाराज कृष्णदेव जी के चरणों में रख दिया ।
कृष्णदेव जी ने पत्र को खोल कर पढा और कहा - रामजी ! राजा का पत्र तो ठीक है, उन्होंने अपनी भूल को मान लिया है और नम्रता पूर्वक ही लिखा है । बुलाने का आग्रह भी किया है किन्तु अब तो यहां पर ही हमारा भजन - साधन ठीक निर्विध्न चल रहा है । अत: हमारा विचार वहां चलने का नहीं है । रही राजा के रोग की बात सो तो भगवत् कृपा से ठीक हो जायगा । लो तुम मेरे जल पात्र से थो़डा सा जल एक शीशी में भरकर ले जाओ । मंत्री ने कहा - जैसी आपकी आज्ञा होगी वैसा ही किया जायगा । फिर एक शीशी मँगवाकर आचार्य कृष्णदेवजी ने अपने हाथों से अपनी जल की झारी से शीशी भर दी और कह दिया - यह राजा को पिला देना, राजा का रोग मिट जायगा । मंत्री ने कहा - जो आज्ञा है, वैसे ही किया जायगा । फिर मंत्री ने अपने मन में सोचा, संतों का मन भजन में लग रहा है । अत: इनसे विशेष आग्रह करना उचित नहीं है और राजा के रोग निवृत्ति का वचन आपने दे ही दिया है । इसी में संतोष करना चाहिये । 
फिर उसने प्रसाद रुप में भोजन किया और अपनी श्रद्धा के समान वाणी मंदिर में तथा आचार्य कृष्णदेवजी को भेंट चढाई और प्रणाम करके जयपुर लौटने की आज्ञा माँगी । महाराज कृष्णदेवजी ने कहा - अच्छा जाओ । राजा को हमारा शुभाशीर्वाद कह देना और नारायणा दादूधाम की सुरक्षा के लिये संकेत कर देना । नारायणा दादूधाम राजा के पूर्व पुरुषों का पूज्य धाम व गुरुद्वारा है । उसपर उनकी पूर्ण श्रद्धा रहनी चाहिये । इतना कहकर आचार्य कृष्णदेवजी ने अपनी वृति ब्रह्मचिन्तन में लगा दी । 
(क्रमशः)

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