शुक्रवार, 22 मई 2015

*साँभर से आमेर को प्रस्थान*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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दादू संप्रदाय में यह मंत्र २४ अक्षरात्मक गायत्रीमंत्र के समान माना जाता है । इसमें भी २४ ही मंत्र हैं । दादू संप्रदाय ग्रंथों में जहां गुरुमंत्र का उल्लेख होता है, वहां इस मंत्र का संकेत होता है । साधक लोग इसके जाप से श्रेय प्रेय आदि सभी कुछ प्राप्त करते हैं । श्री दादूजी महाराज के मुख कमल से उक्त गुरुमंत्र सुनकर जग्गाजी अति प्रसन्न हुये । फिर यह मन्त्र सभी(शिष्यों) ने धारण कर लिया और श्री दादू वाणी के गुरुदेव के अंग के अंत में इसको स्थान दे दिया गया ।
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*साँभर से आमेर को प्रस्थान*
फिर कुछ दिन के पश्चात् हरि इच्छा से दादूजी के मन में आमेर चलने का संकल्प हो गया । जिस दिन प्रस्थान करना था उस दिन का जब भक्तों को ज्ञात हुआ तो साँभर की जनता ने उस दिन एक सभा का आयोजन किया । उसका स्थान देवयानी तीर्थ के गोघाट के पूर्व की ओर निश्चय किया गया । सभा की सूचना सर्व साधारण को नगर में डूंडी पिटवाकर करदी गई ।
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पहले दिन सभा के योग्य बिछायत का समान पहुँचा दिया । प्रातःकाल नगर के मुख्य मुख्य व्यक्ति दादूजी के भक्त वहां पहुँच गये । साँभर नगर के काजी, बिलंदखान, सिकदार, आदि मुख्य मुख्य राजकाज करने वाले अधिकारी, बीठलव्यास आदि विद्वान् तथा अन्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यादि सभी भक्त सभा में आये । साँभर की साधारण जनता तथा आस - पास के ग्रामों के लोक बहुत मात्रा में आये ।
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फिर दादूजी भी अपनी शिष्य मंडली के साथ नगर से देवयानी तीर्थ के गोघाट पर भक्तों के आग्रह से पधारे । भक्तों ने एक उच्च आसन पर दादूजी को विराजमान करके तथा सब संतों को यथा योग्य आसनों पर विराजमान करके दादूजी महाराज की पूजा की और सब आनन्द में निमग्न हो गये । फिर सबने अपनी - अपनी श्रद्धा भक्ति अनुसार दादूजी की महिमा का गान किया ।
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विद्वानों ने अपने अपने विचारों के अनुसार दादूजी की महत्ता के सूचक भाषण दिये । काजी, बिलंदखान, सिकदार आदि राजकाज करने वालों ने भी सभा में उठकर कुछ थोड़े - थोड़े शब्दों में अपनी२ - गलतियां और दादूजी की परम कृपा का परिचय दिया और कहा - साँभर की जनता का अहोभाग्य था तभी तो दादूजी महाराज ने नाना कष्ट सहन करके बहुत - सा समय यहां व्यतीत किया है ।
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पहले हम सब दादूजी महाराज को जानते नहीं थे । साधारण एक गुजराती हिन्दू समझकर कष्ट देते रहे तो भी महान् संत दादूजी ने हम लोगों पर कभी क्रोध नहीं किया, हम दुःख देने वालों का भी सदा भला ही चाहते रहे । पूर्व जो साँभर नगर में दादूजी महाराज के विपरीत घटनायें घटी उनको सांभर का बच्चा - बच्चा जानता है । उनको दोहराने की आवश्यकता नहीं ।
(क्रमशः)

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