बुधवार, 27 मई 2015

‪#‎daduji‬
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अथ अध्याय ४ ~ 
६ आचार्य कृष्णदेव जी ~ 
मंत्री भी पुन: प्रणाम करके जयपुर के लिये चल पडे । जयपुर पहुँच कर राजा सवाई जयसिंह के पास गये । राजा को प्रणाम करके बैठ गये, फिर अवकाश देख करके कहा - मैं मेडता जाकर नारायणा दादूधाम के आचार्य कृष्णदेवजी से मिला और आपका पत्र भी दिया तथा आपकी ओर से प्रार्थना भी की । उन्होंने आप का पत्र पढकर कहा - ठीक है राजा अपनी भूल तो स्वीकार करते हैं, किन्तु अब हमारा विचार तो यहां ही रहने का है । यहां निर्विध्न भजन - साधन चला रहा है । वहां जाने पर और कोई द्वन्द्व खडा हो जायगा । फिर मैंने कहा - अब कोई द्वन्द्व खडा नहीं होने दिया जायगा । अब तो स्वयं राजा भी आपके भजन में विध्न नहीं हो ऐसी ही आपके लिये व्यवस्था करेंगे । किन्तु फिर भी नारायणा दादूधाम पर आना उन्होंने स्वीकार नहीं किया । आपका रोग नष्ट करने के लिये अपनी झारी का जल दिया है और कहा है - इसके पान करने पर राजा का रोग मिट जायगा । राजा ने कहा - ठीक है, मैं अवश्य पान करुंगा । फिर कृष्णदेवजी की झारी का जल पीने पर राजा का रोग मिट गया था । फिर तो कृष्णदेवजी पर राजा की श्रद्धा और बढ गई थी । 
मेडता धाम का साधना क्रम ~
आचार्य कृष्णदेवजी महाराज परम विरक्त भजनानन्दी संत थे । उनके पास मारवाड के सत्संगियों का आना जाना बहुत ही रहता था और अन्य प्रदेशों के संत तथा सत्संगी भी आते ही रहते थे । जोधपुर नरेश भी कभी - २ आते थे । स्थान पर सत्संग प्रतिदिन होता था । दादू पंथ के आचार्य जहां हों वहां दादूवाणी की कथा प्रतिदिन होती है । यह तो नियम ही है । अत: प्रात: प्रतिदिन ‘दादूवाणी’ की कथा आचार्य जी के विद्वान शिष्य संत करते थे । फिर गायक संत संतों के भजन सुनाते थे । वे भजन भी श्रोताओं के आनन्द को बढाते थे । कथा कीर्तन के पश्‍चात् आगत साधकों की जिज्ञासा पूर्ति के लिये आचार्य कृष्णदेवजी महाराज भी अपनी अमृतमयी वाणी कुछ समय सुनाकर साधकों को तृप्त करते थे । जो नारायणा दादूधाम में साधना का क्रम था, वही मेडता धाम में होता था । 

(क्रमशः)

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