#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
दादू अनुभव काटै रोग को, अनहद उपजै आइ ।
सेझे का जल निर्मला, पीवै रुचि ल्यौ लाइ ॥
सोई अनुभव सोई ऊपजी, सोई शब्द तत सार ।
सुनतां ही साहिब मिलै, मन के जाहिं विकार ॥
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साभार : Ramjibhai Jotaniya ~
एक बाग है, अनुभव का,
उसमें खिले हैं भाव पुष्प ये पुष्प
बरसों का निदाघ झेल कर
बड़े हुए ये पुष्प समय के शेष नाम हैं,
अनुभव का अपना एक पूरा आकाश है
उस आकाश में उगा है एक चाँद,
चाँद की एक जिद है
अनवरत वह रोज-ब-रोज
मुझे समझाना चाहता है,
मैं उस चाँद के डूब जानेकी
प्रतीक्षा करती हूँ,
अनुभव एक कौतुक है
अपने होने का और खुद को
खोने के बीच के सफर का,
जहाँ जाता है रास्ता सिफर का.... ॐ
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