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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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*नोरंगपुरे पधारना -*
फिर टीकम ने कहा - "प्रभो ! राम - राम तो ठग, ठाकुर चोर आदि सब ही कहते हैं, किंतु जैसे राम जी प्रसन्न हों वैसी ही विधि मुझे नाम चिन्तन की बताइये ? तब दादूजी ने यह पद कहा -
"इन बातन मेरा मन माने,
द्वितिया दोइ नहीं उर अंतर, एक एक कर पीव को जाने ॥टेक॥
पूर्ण ब्रह्म देखे सबहिन में, भ्रम न जीव काहो तैं आने ।
होय दयालु दीनता सब सौं; अरि पांचन को करे किसाने ॥१॥
आपा पर सम सब तत चीन्हैं, हरी भजे केवल यश गाने ।
दादू सोइ सहज घर आने, संकट सबै जीव के भाने ॥२॥
इस प्रकार टीकम को उपदेश दिया तथा नाम देकर नाम साधना का क्रम बताया -
*"पहले श्रवण द्वितीय रसना, तृतीय हृदय गाय ।*
*चतुर्थी चिन्तन भया, तब रोम रोम ल्यों लाय ॥"*
फिर वह अपने शिल्प कर्म को त्यागकर दादूजी का शिष्य होकर भगवद् भजन में अनुरक्त हो गया ।
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धाणक्या से भैराणा का उद्धव भक्त भैराणे ले गया और पर्वत पर आसन कराया । वहां कपिल नामक भैरूं रहता था । वह रात्रि को आया और दादूजी को बोला - स्वामिन् ! यह तो मेरा स्थान है, आप यहां कैसे रह सकेंगे ? मेरे भक्त तो तामस प्रकृति के होते हैं । वे यहां बकरा चढायेंगे, मदिरा पान करेंगे । दादूजी ने कहा - राम भक्तों में मेरा तेरा नहीं होता है । फिर भैरूं को दादूजी ने उपदेश दिया ।
(क्रमशः)
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