#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
कोटि बर्ष लौं राखिये, बंसा चन्दन पास ।
दादू गुण लिये रहै, कदे न लागै बास ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, पत्थर पानी मांहि ।
दादू आडा अंग है, भीतर भेदै नांहि ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, लोहा पारस संग ।
दादू रोम का अन्तरा, पलटै नांही अंग ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, जीव ब्रह्म संग दोइ ।
दादू मांहीं वासना, कदे न मेला होइ ॥
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साभार : @Ramjibhai Jotaniya ~
प्रेम और अहंकार:
"परमात्मा प्रेम स्वरूप है, और हर मनुष्य प्रेम चाहता है, क्योंकि वह भी प्रेम स्वरूप ही है। परमात्मा और आपके बीच केवल एक दीवार है आपके अहंकार की, क्योंकि परमात्मा का कोई अहंकार नहीं होता है, इसलिए परमात्मा से प्रेम करना आसान है, केवल आपको आपका अहंकार ही हटाना है. और प्रेम प्रकट हो जाएगा।
दो व्यक्तियों के बीच दोनो के अहंकार की दो दीवारें हैं, इसलिए दो व्यक्तियों का आपस में प्रेम करना ज़्यादा कठिन है जब तक दोनों के अहंकारों की दीवारें नहीं हटेगी तब तक प्रेम प्रकट नहीं होगा।"--
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