#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२४. स्वरूप बिस्मरण को अंग*
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*कहूं भूल्यौ कामरत, कहूं भूल्यौ साधि जात,*
*कहूं भूल्यौ गृहि मधि कहूं बनवासी है ।*
*कहूं भूल्यौ नीच जांनि कहूं भूल्यौ ऊंच मांनि,*
*कहूं भूल्यौ मोह बांधि कहूं तौ उदासी है ॥*
*कहूं भूल्यौ मौंन धरि कहूं बकबाद करि,*
*कहूं भूल्यौ मक्कै जाइ कहूं भूल्यौ काशी है ।*
*सुन्दर कहत अहंकार ही तैं भूल्यो आप,*
*एक आवै रोज अरु दूजै बड़ी हांसी है ॥१६॥*
*अहंकार के कारण आत्मस्वरूप में भ्रम* : कहीं कोई कामनावासना में अन्धा है, कहीं कोई यम नियम के व्रत में बँधा हुआ है; कहीं कोई गृहस्थ के जाल में फँसा हुआ है, कोई वनवास में सुख मान रहा है ।
कभी अपने को नीच मान कर दुःखी होता है, कभी उच्च जाती का मान कर उस का अभिमान करता है । कहीं मोह से मुग्ध होकर बन्धा हुआ है तो कहीं उपेक्षा से किसी के प्रति उदासीन है ।
कहीं मौन धारण कर बैठा हुआ है तो कहीं उपदेशक के रूप में वृथा प्रलाप कर रहा है । कहीं कोई मक्का हज करने जा रहा है तो कोई द्वारका तीर्थयात्रा करने जा रहा है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - एक अहंकार के कारण यह आत्मा स्वरूप को भुला हुआ है । मुझे इसी पर हँसी आती है कि यह प्रतिदिन एक नयी उपाधि(संकट) गले में डाल लेता है ॥१६॥
(क्रमशः)
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