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॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
२३३. समर्थाई । रंग ताल ~
जीवत मारे मुये जिलाये, बोलत गूंगे गूंग बुलाये ॥ टेक ॥
जागत निशि भर सोई सुलाये, सोवत रैनि सोई जगाये ॥ १ ॥
सूझत नैनहुँ लोइन लीये, अंध विचारे ता मुख दीये ॥ २ ॥
चलते भारी ते बिठलाये, अपंग विचारे सोई चलाये ॥ ३ ॥
ऐसा अद्भुत हम कुछ पाया, दादू सतगुरु कहि समझाया ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव ईश्वर समर्थाई दिखा रहे हैं कि हे समर्थ परमेश्वर ! आपकी समर्थाई को हम बारम्बार नमस्कार करते हैं । विषय - वासना में जिनके मन इन्द्रियाँ सजीव रहते थे, उनके मन इन्द्रियों को मारकर आपके नाम - स्मरण में, आपकी समर्थाई ने तुलसीदास जैसों को जिला दिया अथवा जो सदा जीते थे, उनको आपने मार दिया और मरते थे, उनको जिला दिया । ज्यादा बोलते थे, उनको गूंगे बना दिया और गूंगे थे, उनको ज्यादा बोलने वाला बना दिया, ऐसे आप समर्थ हो । सारी रात जागते थे, उनको आप सुला देते हो और सोते हैं, उनको आप जगा देते हो । जिनको नेत्रों से दिखता था, उनकी आप दृष्टि को ले लेते हो और बिचारे अंधों को नेत्र देकर आप मुख दिखला देते हो, जैसे बिल्वमंगल आदि को । भारी चलते थे हनुमान जी जैसे, उनको आपने राम - चरणों में स्थिर कर दिया । और बिचारे अपंग थे, उनको पाँव देकर चला दिया । हे साहिब ! ऐसी आपकी अद्भुत समर्थाई आप में देखी है । यह आपकी समर्थाई का ज्ञान, सत्य उपदेश के देने वाले सतगुरु ने हमको कहकर समझाया है ।
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥ २३३ ॥
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