🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*~ द्वादश विन्दु ~*
.
*सांभर से प्रयाण*
दादूजी महाराज की साँभर निवासियों पर महती कृपा रही किन्तु आज आप १२ वर्ष तक यहां निवास करके अन्यत्र पधारने का विचार कर रहे हैं । वियोग से पहले ही हम सब को वियोग व्यथा अवश्य सता रही है । अतः हम प्रार्थना करते हैं कि फिर भी स्वामीजी महाराज साँभर की जनता पर कृपा करते ही रहेंगे । इस प्रकार अधिकारीगण के पश्चात् ब्राह्मण वर्ग की ओर से बीठलव्यास उठे ।
.
बीठलव्यास ने कहा - यों तो देवयानी के इस गोघाट का माहात्मय प्रसिद्ध ही है किन्तु आज महान् संत दादूजी महाराज तथा अन्य संत मंडली के पधारने से इसका महत्त्व और भी बढ़ गया है । संतजन जिस भूमि का सेवन करते हैं वही भूमि तीर्थ बन जाती है । संत जंगम तीर्थ कहे जाते हैं ।
.
आज जंगम और स्थावर दोनों तीर्थों का यहां योग हुआ है तथा साथ ही जनता रूप विराट् भगवान् का भी दर्शन हो रहा है । आज यहां इस त्रिवेणी संगम पर साथ ही सब लाभ मिल रहे हैं । दादूजी की साधन पद्धति परम उत्कृष्ट है तथा सुगम भी । मुझे दादूजी के उपदेशों से महान् लाभ हुआ उसका कथन तो मैं शतांश में भी नहीं कर सकता ।
.
दादूजी महाराज ने १२ वर्ष तक यहां विराजकर अनन्त लोगों के अज्ञानांधकार को नष्ट किया है । हम तो चाहते हैं, दादूजी महाराज सदा साँभर में ही विराजें किंतु संत तो सर्व हितैषी होते हैं, सबका ही कल्याण चाहते हैं । अतः आज अन्य स्थान के प्राणियों के कल्याणार्थ यहां से पधार रहे हैं । फिर भी हम सब प्रार्थना करते हैं कि स्वामीजी पुनः शीघ्र ही दर्शन देने की कृपा अवश्य अरेंगे ।
.
पुनः शीघ्र दर्शन देने की बात का सभी सभासदों ने एक स्वर से समर्थन किया । फिर दादूजी ने कहा - जहां भाव है, वहां ही हम हैं, भावुकों से हम दूर तो नहीं हैं । तब माधव, दामोदर, विलंदखान, सिकदार आदि ने कहा - आपका
कथन यथार्थ है ।
.
बीठलव्यास, भगवान् व्यास आदि भक्तों ने कहा - स्वामिन् ! हमारे भी मन तो आपके चरणों में ही रहेंगे, केवल शरीर ही साँभर के घरों में रहेंगे । प्रस्थान करते समय बीठलव्यास दादूजी के वियोग से विशेष अधीर होने लगे, तब दादूजी ने अपने अंग के वस्त्रादि देकर कहा - इनका दर्शन तथा पूजन करते रहने से वियोग दुःख नहीं सतायेगा ।
.
फिर सबको कहा - हरि स्मरण करते रहना, अतिथि आदि की सेवा करना, परस्पर प्रेम रखना इत्यादिक उपदेश देकर प्रस्थान करने लगे तब सबने दादूजी की जय बोली और प्रणाम करके लौट गये । आज समय सं. १६३७ चैत्र सुदि रविवार था । दादूजी का साँभर से पधारने का पता आसपास के सब ग्रामों को लग गया था । इससे नोरंगपुरा के भक्त लोग जिस मार्ग से दादूजी पधार रहे थे उस मार्ग को रोककर बैठे थे ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें