#daduji
|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २५ . सांख्य ज्ञांन को अंग =*
.
*= प्रश्नोत्तर =*
*देह यह किनकौ है ? देह पंच भूतन कौ,*
*पंच भूत कौंन तैं हैं ? तामसाहंकार तैं ।*
*अहंकार कौंन तैं हैं ? जाकौं महत्तत्त कहैं,*
*महत्तत्त कौन तैं हैं ? प्रकृति मंझार तै ॥*
*प्रकृति हू कौंन तैं है ? पुरुष है जाकौ नांम,*
*पुरुष सु कौन तैं है ? ब्रह्म निराधार तैं ।*
*ब्रह्म अब जांन्यौ हम, जान्यौ है तौ निश्चै कर,*
*निश्चै हम कियौ है तो चुप मुख द्वार तैं ॥१४॥*
*प्रश्नोत्तर* : यह देह किन से उत्पन्न है ? यह देह पाँच महाभूतों से उत्पन्न है ।
ये पञ्च महाभूत किन से उत्पन्न होते हैं ? तामस अहंकार से ।
यह अहंकार किससे उत्पन्न होता है ? जिसे महत् तत्त्व कहते हैं, उसी से उत्पन्न होता है ।
यह महत् तत्त्व किससे होता है ? प्रकृति से ।
यह प्रकृति किससे उत्पन्न होती है ? पुरुष से ।
यह पुरुष किस से उत्पन्न होता है ? निराश्रय ब्रह्म से ।
शि० - हे गुरुदेव ! आप का उपदेश सुनकर अब मैं ब्रह्म को जान पाया हूँ ।
गु० - यदि जान लिया है तो निश्चय कर मन में धारण कर ।
शि० - मैंने निश्चय कर के मन में धारण कर किया है ।
गु० - यदि धारण कर लिया है तो मौन धारण कर । मुख से इस विषय में कुछ भी न बोल ॥१४॥ (विस्तार के लिये इसी अंग का सप्त छन्द भी पुनः पढ़े ।)
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें