रविवार, 28 जून 2015

= ३८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू दीया है भला, दीया करौ सब कोइ ।
घर में धर्या न पाइये, जे कर दीया न होइ ॥ 
दादू दीये का गुण तेल है, दीया मोटी बात ।
दीया जग में चाँदणां, दीया चालै साथ ॥ 
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साभार : सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र ~
॥ श्री गुरुभ्यो नमः 
॥ देना ॥
देने का दिव्य-भाव व्यक्ति के अन्तःकरण में एक ऐसा रासायनिक परिवर्तन करता है कि नकारात्मक वृत्तियां -
सकारात्मक विचार में बदल जाती है । 
जैसे बाँझ प्रसव - पीड़ा के अभाव में -
मातृत्व सुख से वञ्चित रह जाती है, 
वैसे ही कञ्जूस देने के अद्भुत भाव से चूक जाता है । 
उदार मन से दान न देनेवाला कृपण उस कुत्ते के सदृश है, जो नदी में होते हुए भी जीभ से चाटकर प्यास बुझाता है । 
सन्त कबीर कहते हैं कि ईश्वर की सृष्टि से देने के महाभाव सीखो :
तरवर सरवर संतवर चौथे बरसे मेह ।
परमारथ के कारने चारों धारे देह ॥
- सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र

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