रविवार, 28 जून 2015

= ३९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
साहिब जी के नांव में, भाव भगति विश्वास ।
लै समाधि लागा रहै, दादू सांई पास ॥ 
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साभार ~ Ramjibhai Jotaniya 
~ Neha Sharma
ॐ श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ॐ
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**भक्ति में भावना की प्रधानता**
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चैतन्य महाप्रभु जब जगन्नाथ पुरी से दक्षिण की यात्रा पर जा रहे थे, तो उन्होंने एक सरोवर के किनारे कोई ब्राह्मण गीता पाठ करता हुआ देखा । वह संस्कृत नहीं जानता था, और श्लोक अशुद्ध बोलता था । चैतन्य महाप्रभु वहाँ ठहर गये कि उसकी अशुद्धि के लिये टोके । 
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पर देखा कि भक्ति में विह्वल होने से उसकी आँखों से अश्रु बह रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु ने आश्चर्य से पूछा - "आप संस्कृत तो जानते नहीं, फिर श्लोकों का अर्थ क्या समझ में आता होगा और बिना अर्थ जाने आप इतने भाव विभोर कैसे हो पाते है।"
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उस व्यक्ति ने उत्तर दिया - "आपको यह कथन सर्वथा सत्य है । कि मैं न तो संस्कृत जानता हूँ । और न श्लोकों का अर्थ समझता हूँ । फिर भी जब मैं पाठ करता हूँ तो लगता है । मानों कुरुक्षेत्र में खड़े हुये भगवान अमृतमय वाणी बोल रहे हैं । और मैं उस वाणी को दुहरा रहा हूँ । इस भावना से मेरा आत्म आनन्द विभोर हो जाता है।"
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चैतन्य महाप्रभु उस भक्त के चरणों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा -
"तुम हजार विद्वानों से बढ़कर हो, तुम्हारा गीता पाठ धन्य है ।"
भक्ति में भावना ही प्रधान है, कर्मकाण्ड तो उसका कलेवर मात्र है । 
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जिसकी भावना श्रेष्ठ है उसका कर्मकाण्ड अशुद्ध होने पर भी वह ईश्वर को प्राप्त कर सकता है । केवल भावना हीन व्यक्ति शुद्ध कर्मकाण्ड होने पर भी कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता ।
!!!! Ψ !!卐!! हर हर महादेव !!卐!! Ψ !!!
_/\_ॐ नम शिवाय _/\_

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