मंगलवार, 2 जून 2015

= १९६ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू जा कारण जग ढूंढिया, 
सो तो घट ही मांहि ।
मैं तैं पड़दा भरम का, तातैं जानत नांहि ॥
दादू दूर कहैं ते दूर हैं, राम रह्या भरपूर ।
नैनहुं बिन सूझै नहीं, तातैं रवि कत दूर ॥
=====================
साभार ~ Ramjibhai Jotaniya ~
"जिसे भी खोजा जा सके वह सत्य
हो नही सकता, जहाँ पर जाकर सारी खोजे
और खोजी समाप्त हो जाता है, फिर जो शेष
रह जाता है वह सत्य है"
-- स्वामी शून्यानन्द
"That which can be found cannot
be true, where all the search and
the investigative ends, then what
remains is the truth"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें