मंगलवार, 2 जून 2015

‪#‎daduji‬
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अथ अध्याय ५
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार मेडता में कृष्णदेवजी के महोत्सव पर उतराधे आदि संतों ने कृष्णदेवजी महाराज की आज्ञानुसार गद्दी पर चैनरामजी को माघ शु. १ वि. सं. १८१० में बैठाकर दादूपंथी समाज के आचार्य चैनरामजी महाराज हैं, यह घोषणा कर दी गई । और नागों को छोड कर अन्य सभी समाज ने चैनरामजी को आचार्य मानकर, आचार्य जी की संपूर्ण मर्यादा का निर्वाह चैनरामजी के साथ ही करने लगे थे । किन्तु नागे साधुओं ने और जयपुर नरेश ने मिलकर नारायणा दादूधाम में कृष्णदेवजी के दूसरे शिष्य गंगारामजी को गद्दी पर बैठा दिया । इससे उतराधे और अन्य सभी समाज ने विचार किया, यह तो अनुचित कार्य किया गया है । जब कृष्णदेवजी महाराज कह गये थे कि - चैनरामजी को ही आचार्य बनाना फिर उनकी आज्ञा न मानकर अपनी इच्छा से ही गंगाराम जी को आचार्य बना देना उचित नहीं है । इस अनुचित व्यवहार की मान्यता देना हमारे लिये भी अनुचित ही होगा । हमने तो कृष्णदेवजी महाराज ने जो वि. सं. १८०९ के फाल्गुन शुक्ला के मेले में आज्ञा दी थी, उसको सुनकर के उनके सामने कहा था कि - आपकी आज्ञा के अनुसार ही किया जायगा । 
इससे ही मेडता में महोत्सव के समय चैनरामजी को आचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया । फिर नारायणा दादूधाम में गंगारामजी को गद्दी पर बैठा दिया, यह कहां तक संगत है ? क्या समाज में दो आचार्य रहेंगे ? ऐसा होना तो समाज का विघटन नहीं समझा जायगा । अत: हमें प्रयत्न करना है कि - गंगारामजी को आचार्य नहीं मानकर चैनरामजी को ही नारायणा दादूधाम पर लाया जाय । फिर उतराधे आदि अन्य थांमों के संतों ने सांभर में एकत्र होकर नागों के मुख्य २ महन्त, संतों को पत्र लिखे कि - आप सब महन्त, संतों को हम सब का सादर सस्नेह सत्यराम, आगे आप से निवेदन है कि - आचार्य कृष्णदेवजी महाराज की आज्ञा से ही चैनरामजी को आचार्य बनाया था फिर आप लोगों ने यह क्या लीला रची है ? क्या हमें पूर्वाचार्य कृष्णदेवजी की आज्ञा अमान्य है ? सो तो आप गुरु भक्तों के लिये उचित नहीं है । अब हमारे समाज की मर्यादा के अनुसार ही आप हम सब चैनरामजी को मेडता से लाकर नारायणा दादूधाम में रखें और गंगारामजी को आचार्य न मानकर मुख्य भंडारी रख दिया जाय, यही उचित होगा । हमारा विचार तो यही है । अब हम सांभर में सब एकत्र हो रहे हैं और आप के सहयोग की प्रतीक्षा कर रहे हैं । आप लोगों के उत्तर के आने से ही आगे का कार्यक्रम निश्‍चय किया जायगा । 

(क्रमशः)

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