मंगलवार, 2 जून 2015

२५ . सांख्य ज्ञांन को अंग ~ १९



‪#‎daduji‬
|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २५ . सांख्य ज्ञांन को अंग =*
*आतमा शरीर दोऊ एकमेक देखियत,*
*जब लग अन्तहकरन मैं अज्ञानं है ।*
*जैसैं अन्धियारी रैंनि घर मैं अन्धेरौ होइ,*
*आंखिनि कौ तेज ज्यौं कौ त्यौं ही विद्यमांन है ।*
*जदपि अंधेरै मांहिं नैंन कौ न सूझे कछु,*
*तदपि अंधेरै सौ अलिप्त बखांनि है ।*
*सुन्दर कहत तौ जौं एकमेक जानत है,*
*जौ लौं नहिं प्रकट प्रकाश ज्ञान भान है ॥१९॥*
*आत्मा एवं देह की भिन्नता* : यह आत्मा एवं शरीर तभी तक परस्पर मिले हुए दिखायी देते हैं जब तक अन्तःकरण अज्ञान से आवृत है ।
जैसे अन्धकारमय रात्रि में घर में सर्वत्र अन्धकार ही दिखायी देता है, यद्यपि आँखों का तेज(दर्शनशक्ति) पूर्ववत् विध्यमान रहता है । 
यद्यपि उस अन्धकार में नेत्रों को कुछ भी नहीं दिखायी देता, तो भी नेत्र उस अन्धकार से अलिप्त ही माने जाते हैं । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - उसी प्रकार यह देह एवं आत्मा परस्पर सम्मिलित दिखायी देते हैं, जब तक कि अन्तःकरण में ज्ञानरूप सूर्य का प्रकाश प्रकट नहीं होता ॥१९॥ 
(क्रमशः)

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