मंगलवार, 30 जून 2015

२६ . बिचार को अंग ~ ६

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|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २६. बिचार को अंग =*
*क्षीण रु पुष्ट शरीर कौ धर्म जु,* 
*शीत हू उष्ण जरा मृति ठांनै ।* 
*भूख तृषा गुन प्रांन कौ व्यापत,* 
*शोक रु मोह उभै मन आंनै ॥* 
*बुद्धि बिचार करै निशि बासरि,* 
*चित्त चितै सु अहं अभिमांनै ।* 
*सर्व कौ प्रेरक सर्व कौ साक्षी हु,* 
*सुन्दर आपु कौं न्यारौ ही जांनै ॥६॥* 
कभी क्षीण होना, कभी बलवान् होना - यह शरीर का धर्म(स्वभाव) है । शीत ताप, ज़रा मृत्यु - अपमे अपने समय पर आती रहती हैं । 
भूख एवं प्यास - ये प्राण के धर्म हैं । तथा शोक एवं मोह - ये मन के धर्म है । निरन्तर किसी वस्तु पर विचार करना - यह वुद्धि का धर्म है । 
चित का चिन्तन करना धर्म है तथा अहंकार का अभिमान धर्म है । 
परन्तु *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - उन सभी का प्रेरक एवं इन सभी का साक्षी तत्त्व आत्मा इन सब से पृथक् ही है - ऐसा समझाना चाहिये ॥६॥ 
(क्रमशः)

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