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॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
अथ अध्याय ५
७ आचार्य चैनराम जी ~
चैनराम जी रैणाग्राम के गूजर - गौ़ड ब्राह्मण अभी तक रैण ग्राम में हैं । आप नारायणा दादूधाम के आचार्य कृष्णदेवजी के शिष्य हो गये थे । कृष्णदेवजी महाराज की सेवा में ही रहते थे । कृष्णदेवजी के सत्संग से चैनरामजी भी “साधु के संग से साधु हि होई” की उक्ति के अनुसार महान् संत हो गये थे । चैनरामजी के भजन - साधन की योग्यता तथा सुन्दर स्वभाव दैवी गुणों की विशेषता आदि को देखकर आचार्य कृष्णदेवजी महाराज ने वि.सं. १८०९ के फाल्गुन शुक्ला मेला के अवसर पर जो उतराधे आदि संत आये थे, उनको कह दिया था कि - अब मेरा राम का शरीर जाने वाला है । अत: मेरे पश्चात् गद्दी पर चैनराम को बैठाना । चैनरामजी अच्छे भजनानन्दी, विचारशील संत हैं और गद्दी के योग्य है । अत: इस बात का ध्यान आप लोग पूरा पूरा रखना, किसी अन्य को नहीं बैठाना ।
तब उपस्थित संत समाज के मुख्य २ संतों, महन्तों ने तथा सभी संत, भक्तों ने कहा - “भगवन् ! आप की आज्ञा के अनुसार ही किया जायगा । यह तो हमारे समाज की मर्यादा है ही पूर्वाचार्य जिनका निर्देश कर जायें उनको ही गद्दी पर बैठाया जाता है । उसका निर्वाह समाज अवश्य करेगा ही, फिर आप जैसे महापुरुषों की इच्छा के विरुद्ध कुछ हो भी नहीं सकता ।” फिर कृष्णदेवजी महाराज ने कहा - योग्य आचार्य के बिना समाज छिन्न भिन्न हो जाता है । अत: समाज के संरक्षण के लिये इस बात का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिये । यद्यपि आप सभी संत समझे हुये हैं, परिस्थिति को देखकर ही कार्य करेंगे, तो भी मैंने संकेत कर दिया है कि - चैनराम को ही गद्दी पर बैठाना । उक्त पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार मेडता में कृष्णदेवजी के महोत्सव पर उतराधे आदि संतों ने कृष्णदेवजी महाराज की आज्ञानुसार गद्दी पर चैनरामजी को माघ शु. १ वि. सं. १८१० में बैठाकर दादूपंथी समाज के आचार्य चैनरामजी महाराज हैं, यह घोषणा कर दी गई ।
(क्रमशः)
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