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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ १६ वां विन्दु ~*
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*दादू रूप में ठग -*
खंडेला ग्राम में एक ठग ने अपने को दादू बताया -
"ग्राम खंडेले ठग एक आया, स्वामी का भेष बनाया ।
जन पूछैं कह मैं हूँ दादू, हरि मम वश हैं भक्त अनादू ।"
(आत्मबिहारी)
खंडेले के दादू के समाचार आमेर में भी पहुँच गये । आमेर नरेश भगवतदास ने सुना तब राजा ने दादूजी को कहा - भगवन् ! खंडेले में दादूजी हैं, ऐसा मैंने सुना है । किंतु मैं तो आपको अलौकिक महापुरुष मानता हूँ, वहां भी आप ही हो सकते हैं । आपकी योगशक्ति तो विचित्र है ही, सांभर में आपने एक समय ही सात घरों पर सात शरीर धारण करके भोजन किया था, यह तो अति प्रसिद्ध है । अतः खंडेले में आप ही हो सकते हैं ।
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दादूजी ने कहा - "शरीर तो यहां ही है किंतु अधिष्ठान रूप से तो सर्व स्थानों में ही विद्यमान है ।" तब राजा समझ गया कि खंडेला में दादू बनने वाला अवश्य ही कोई ठग है । खंडेले में जो दादू बना हुआ ठग था वह कहता था, "आमेर का दादू तो ठग है, दादू तो मैं ही हूँ ।"
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खंडेले से आने वाले खंडेले के किसी भक्त ने उसका उक्त कथन "आमेर का दादू ठग है" दादूजी को सुनाया तब दादूजी ने कहा -
"दादू ठग आमेर में, साधौं सौं कहियो ।
हम शरणाई राम की, तुम नीके रहियो ॥"
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अर्थ - उन संतों से कहना - आमेर का दादू तो ठग है, तो भी राम की शरण है किंतु आप सावधान रहना, कहीं आपको माया न ठग ले । इससे अधिक दादूजी ने कुछ भी नहीं कहा । फिर उसके कपट का पता लग गया, तब उसको उक्त कपट अर्थात् दादू न होने पर अपने को दादू बताकर जनता को ठगना रूप कपट का दंड देने की व्यवस्था की गई ।
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तब उसने कहा - मैं दंड का भागी नहीं हूँ । दंड देने वालों ने पूछा - क्यों नहीं है ? उसने कहा - संत प्रवर दादूजी का नाम लेने से भी पाप नष्ट हो जाते हैं फिर मैं तो दादू बनकर रहा हूँ इससे मेरे पाप रूप दोष रहा ही नहीं है । फिर आप लोग दंड कैसे देंगे ? यह उत्तर देने पर उसे छोड़ दिया गया । फिर तो उसकी बुद्धि भी शुद्ध हो गई ।
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वह अपने कर्म से लज्जित होकर आमेर में दादूजी के पास आया और साष्टांग प्रणाम करके बोला - स्वामिन् ! मेरा नाम तो शंकरपुरी है किंतु मैंने अपने को दादू कहकर बहुतों को धोखा दिया है, केवल धन के लिये तथा सेवा कराने के लिये । साधन में लगाना तथा उपदेश देकर कुमार्ग से बचाना रूप काम तो आपके समान नहीं कर सका हूँ । अतः मैंने बहुत बड़ा पाप किया है । अब मैं ठगी करना छोड़ कर आपकी शरण आया हूँ, आप मुझ पर दया करें ।
(क्रमशः)
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