卐 सत्यराम सा 卐
दादू माला सब आकार की, कोई साधु सुमिरै राम ।
करणी कर तैं क्या किया, ऐसा तेरा नाम ॥
सब घट मुख रसना करै, रटै राम का नाम ।
दादू पीवै रामरस, अगम अगोचर ठाम ॥
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साभार ~ Durgesh Tripathi
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*108 अंक का रहस्य*
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वेदान्त में एक मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 का उल्लेख मिलता है जिसका हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों(वैज्ञानिकों) ने अविष्कार किया था । मेरी सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि, 108 = ॐ(जो पूर्णता का द्योतक है) प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना :
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1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1ॐ 149,600,000 km/1,391,000 km = लगभग108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच लगभग 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
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2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1ॐ 1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐसूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं ।
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3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1ॐ 384400 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं ।
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4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों(1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है । वैदिक ज्योतिष के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है ।
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5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है । 1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
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6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है । 1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें (6 मिनट = 1 मुहूर्त)
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7. सभी 9 ग्रह(वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) सभी चक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
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8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
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9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है(1 विपल = 2.5 सेकेण्ड) 1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
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***108 का आध्यात्मिक अर्थ***
1 सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
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0 सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
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8 सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है । अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है ।
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जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव(अ + उ+ म्) है और नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है उसी प्रकार ब्रह्म की गाणितिक अभिव्यंजना 108 है !!
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