#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
जब हम ऊजड़ चालते, तब कहते मारग मांहि ।
दादू पहुंचे पंथ चल, कहैं यहु मारग नांहि ॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
साभार : Rp Tripathi ~
**सबसे बड़ा पाप ? :: क्या कहेंगें आप ? :: एक संक्षिप्त परिचर्चा**
विषय वस्तु की सत्यता को परखने लिए, एक काल्पनिक, परन्तु पूर्णतः व्योहारिक, कहानी का सहारा लेते हैं सम्मानित मित्रो !! कहते हैं एक बार, प्रभु भोले-नाथ, देवी पार्वती के साथ, अपनी सवारी नंदी पर विराजमान हो, भृमण करते हुए, एक ऐंसे प्रदेश से निकले, जहाँ दोनों को, कोई नहीं जानता था !! और उन्हें रास्ते में, चार गाँव मिले !! हम उन उन गाँव-वासियों की प्रतिक्रियाओं का अवलोकन करते हैं, जो कुछ इस प्रकार थीं -
.
१. प्रथम नगर के ग्राम - वासियों ने जब उन दोनों को एक साथ, नंदी पर बैठे देखा तो कहा - ये दोनों कितने निष्ठुर हृदय हैं - दो व्यक्ति, इस निरीह एक बैल पर बैठे हैं !! तो भगवान शंकर, नंदी से उतर कर पैदल चलने लगे !!
.
२. जब दूसरा गाँव आया, और जब उन्होंने धर्म-पत्नी को नंदी पर बैठे देखा, और धर्म-पति को पैदल चलते हुए, तो कहा - घोर कलियुग आ गया है, देखो पतिदेव पैदल चल रहे हैं, और ये पत्नी, महारानी समान, नंदी पर सवारी कर रही हैं !! तो देवी पार्वती, उतर कर पैदल चलने लगी, और उन्होंने स्नेह-पूर्वक आग्रह करके, देवों के देव, महादेव को नंदी पर बिठा दिया !!
.
३. जब तीसरा गाँव आया, और जब उन्होंने पति को नंदी पर बैठे देखा, और पत्नी को पैदल चलते हुए, तो कहा - सचमुच घोर कलियुग आ गया है, देखो तो यह निर्दयी पति स्वयं नंदी पर बैठा है, और माँ-बाप के घर, नाजों से पली हुई, फूल जैसे राजकुमारी को, पैदल चला रहा है !! तो भगवान् शंकर भी, नंदी से उतर कर, माता पार्वती साथ, पैदल चलने लगे !! और सोचा, चलो अब तो लोग खुश हो जाएंगे !!
.
४. परन्तु जब चौथा गाँव आया, तो प्रभु शिव और देवी पार्वती के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि जब उन गाँव-वासियों ने, नंदी को खाली देखा, और उन दोनों को पैदल चलते, तो कहा - अरे देखो तो, ये पति-पत्नी कितने मूर्ख हैं, सवारी(नंदी) के होते हुए भी, यह दोनों मूर्ख, पैदल चल रहे हैं !!
.
सार रूप में -
मुंडे मुंडे मति भिन्ना !! अर्थात अलग अलग मस्तिकों(व्यक्तियों) में, अलग अलग बुद्धि होती है !! अतः हमें, ना तो कभी सभी को, संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए, और ना उनसे, किसी प्रकार का, विवाद !! वरन शांत रह, उनपर कृपा की दृष्टि देखना चाहिए क्योंकि, उनके मस्तिष्क का अभी, विकास चल रहा है !! हमें तो सिर्फ एक का ही ख्याल रखना चाहिए, और वह है - अपनी "अंतरात्मा" !!
.
दूसरे शब्दों में हमें,
"सबसे बड़ा पाप, क्या कहेंगे आप"; को ध्यान रखते हुए, संसार को नहीं, स्वयं की अंतरात्मा में विराजमान प्रभु परमेश्वर को संतुष्ट कर, प्रभु के आशीर्वाद से, शांत, प्रसन्न और निर्विवाद, जीवन बिताना चाहिए !! इसी को कहते हैं - "एक साधे सब सब सधे; सब साधे सब जाये" !!
********ॐ कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम्********
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें