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॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
२६६. काल चेतावनी । पंजाबी त्रिताल ~
माया संसार की सब झूठी ।
मात पिता सब ऊभे भाई, तिनहिं देखतां लूटी ॥ टेक ॥
जब लग जीव काया में थारे, खिण बैठी खिण ऊठी ।
हंस जु था सो खेल गया रे, तब तैं संगति छूटी ॥ १ ॥
ए दिन पूगे आयु घटानी, तब निचिन्त होइ सूती ।
दादू दास कहै ऐसी काया, जैसी गगरिया फूटी ॥ २ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें काल से चेत कराते हैं कि हे जिज्ञासु ! संसार की रचना करने वाली यह माया और इसका कार्य मिथ्या है । माता - पिता, भाई - बँधु, इनके देखते - देखते ही इस माया रूप काया को काल लूट लेता है । जब तक तेरी काया में जीव है, तब तक यह कभी उठती है, कभी बैठती है, कभी आती है, कभी जाती है । इसमें जीवरूप हंस था, वह नाना प्रकार के खेल खेलकर इसमें से जब चला जाता है, तब यह निश्चिन्त होकर लम्बी ही सो जाती है । तत्ववेत्ता कहते हैं कि हे साधक ! यह काया ऐसी है जैसे कि फूटी हुई गगरिया अर्थात् मटकी होती है, उसमें पानी नहीं रुकता । ऐसे ही श्वास रूपी पानी निकल जाता है ।
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