शनिवार, 1 अगस्त 2015

*नामदेवजी के पद का अर्थ*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ १६ वां विन्दु ~*
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*नामदेवजी के पद का अर्थ  -* 
एक समय किसी साधक ने नामदेवजी का निम्नलिखित पद सुनाकर इसका भावार्थ समझाने की प्रार्थना की । इसको समझाने के लिये ही परिचय के अंग की ३४५ से ३५० की साखी कही गई थी । नामदेवजी का पद - 

लटके३ न बोलूँ बाप, व्रत मान२ गाढो,१
कोल्हा  येवड़ा४ मोतीड़ा, मैं मँझे डोले५ देखीला६॥टेक॥
हे बाप ! मेरा यह दृढ़१ व्रत समझो२ कि मैं मिथ्या३ नहीं बोलता, मैंने मेरे भीतर के नेत्रों५ से कद्दू के बराबर४ ध्येय ब्रह्म रूप मोती देखा६ है ॥टेक॥

छेली७  बैली८ (व्याली)  बाघ  जैला९,  माँझरिया१०(माँजरि) भय टूँडै ।
उड़त पँखि  मैं  लवरू  पेख्या, नरली११ जे१२ ह्वै टाँडै ॥१॥
बकरी७ ब्याई८ है, उससे बाघ उत्पन्न हुआ९ है, वह बिल्ली१० के समान भयभीत होकर बोल रहा है (इतने का भावार्थ ३४५ में है) । 
मैंने लवरू पक्षी को उड़ते हुये देखा है, वह ऊँट११ के समान१२ बोल रहा है (इतने का भावार्थ ३४६ में है) ।

बाबलिया१३ चै  षोटे१४,  माँखणियाँ१५  चे  पोटे१६ ।
सँखै१७  सुनहां१८ मारीला१९ तहां मींडक अभिला२० लोटे ॥२॥
बबूल१३ वृक्ष की शाखा१४ पर मक्खन१५ की पोटलियाँ१६ लगी हैं (इतने का भावार्थ ३४७ में है) । 
शशक१७ ने श्वान१८ को मारा१९ है । जहां सर्प है, वहां ही उसे मारने की अभिलाषा२० से मेंढक लौट रहा है । (इतने का भावार्थ ३४८ में है) ।

अम्हे२१  जु  गैला२२ ब्राट२३  देश, तहां गाँझी२४ दूध कैला२५ ।
स्रव आटे२७  गाँझीला२६ तहां चौदह  राँजन२८ भरीला ॥३॥
हम२१ विशाल२३ देश में गये२२, वहां भेड़का२४ दूध संग्रह किया२५, उस भेड़ का दूध स्रवते २ विपत्ति प्रद तुच्छ२६ भाव सूखते हैं२७ हैं । उस भेड़ के दूध से चौदह बड़े - बड़े मटके२८ भरे हैं । (इतने का भावार्थ ३४९ में है) ।

लटक्या२९  गइया३०  गढिया३१ झोलै३२, गढिया३३ येवडे३४ रोले३५ ।
उड़त पँखि  मूँगी३६  पेखी, वाटी३७ जे है डोलै३८॥४॥
झूठा२९ हो गया३० था किन्तु अब दृढ़३१ हुआ३२ है और दृढ़३३ के समान३४ चलता३५ है । (इतने का भावार्थ ३५० के पूर्वार्ध में है) ।
मैंने पक्षी के समान उड़ते हुये चींटी३६ देखी है, उसके नेत्र३८ कटोरे३७ के आकार के सूर्य सम प्रकाशमान हैं । (इतने का भावार्थ ३५० के उत्तरार्ध में है) ।

विष्णुदास  नामदेव इमि प्रणवै, येछै जीव ची४० उकती ।
लटके  आछे साँगीला,३९ ता  छै मोक्ष  न मुकती ॥५॥
विष्णु के दास नामदेव ने भगवान् को प्रणाम करके यह अपने मन की४० विचित्र बात कही है । यह मिथ्या है, ऐसा कहता३९ है उसे पापों से छुटकारा होकर मुक्ति प्राप्त नहीं होती ।
(क्रमशः)

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