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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= २२ वां विन्दु चतुर्थ दिन =*
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*अपनी स्थिति का परिचय देना*
फिर बादशाह ने पूछा - भगवन् ! आप राम राम भी बोलते हैं और अल्लाह भी बोल जाते हैं, आपके धर्म का पता नहीं लगता है कि आप हिन्दू हैं या मुसलमान । कृपा करके यह भी मेरा संशय दूर करैं । बादशाह का उक्त प्रश्न सुनकर दादूजी बोले -
"ना हम हिन्दू होहिंगे, ना हम मुसलमान ।
षट दरशन में हम नहीं, हम रहते रहमान ॥"
अर्थात् जाति दृष्टि से पूछते हो तो हम रहमान(दयालु परमेश्वर) में अनुरक्त रहने वाले उनके भक्त हैं,
"करणी हिन्दू तुरक की, अपनी अपनी ठौर ।
दुहुँ बिच मारग साधु का, यह संतों की रह और ॥
हिन्दू लागे देहुरे, मुसलमान मसीत ।
हम लागे एक अलेख से, जहँ सदा निरंतर प्रीत ॥
न तहँ हिन्दू देहुरा, न तहँ तुरक मसीत ।
दादू आपे आप है, नहीं, तहां रह रीत ॥
यहु मसीत यहु देहुरा, सतगुरु दिया बताय ।
भीतर सेवा बंदगी, बाहर काहे जाय ॥
दोनों हाथी हो रहे, मिल रस पीया म जाय ।
दादू आपा मेट कर, दोनों रहे समाय ॥
दादू हिन्दू तुरक न होयबा, साहिब सेती काम ।
षट दर्शन के संग न जायबा, निर्पख कहबा राम ॥
दादू अल्लह राम का, दो पखतैं न्यारा ।
रहता गुण आकार का, सो गुरु हमारा ॥
दादू सब हम देखा सोधकर, दूजा नाहीं आन ।
सब घट ऐकै आतमा, क्या हिन्दू मुसलमान ॥
दोनों भाई हाथ पग, दोनों भाई कान ।
दोनों भाई नैन हैं, यूं हिन्दू मुसलमान ॥"
(क्रमशः)
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