गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

*= शिष्य जनगोपालजी =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= २३ वां विन्दु दिन ५ =*
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*= शिष्य जनगोपालजी =*
मार्ग में एक भेषधारी के साथ भिक्षा माँगते हुये जनगोपाल को देखा और दादूजी ने अपने नेत्रों के संकेत से जनगोपाल को अपने पास बुलाया । जनगोपाल आ गये । भेषधारी दादूजी का नाम सुन चुका था, इससे उसने कुछ नहीं कहा । जनगोपाल को दादूजी ने कहा - जनगोपाल ! यह सुन्दर मुक्ति साधन रूप मनुष्य जन्म भिक्षा मांगने में ही खो दोगे क्या ?
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फिर दादूजी ने जनगोपाल को यह पद सुनाया -
"ऐसा जन्म अमोलक भाई, जा में मिले राम राई ॥टेक॥
जा में प्राण प्रेम रस पीवे, सदा सुहाग सेज सुख जीवे ॥१॥
आत्मा आय राम सौं राती, अखिल अमर धन पावे थाती ॥२॥
परकट दरशन परसन पावे, परम पुरुष मिल मांहिं समावे ॥३॥
ऐसा जन्म नहीं नर आवे, सो क्यों दादू रत्न गमावे ॥४॥"
उक्त पद सुनने से जनगोपाल का मुख प्रसन्न भासने लगा ।
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फिर दूसरा पद सुनाया -
"कौण जन्म कहँ जाता है, अरे भाई राम छाड कहँ राता है ॥टेक॥
मैं मैं मेरी इन सौं लाग, स्वाद पतंग न सूझे आग ॥१॥
विषयों सौं रत गर्व गूमान, कुंजर काम बँधे अभिमान ॥२॥
लोभ मोह मद माया फंद, ज्यों जल मीन न चेते अंध ॥३॥
दादू यहु तन यूं ही जाय, राम विमुख मर गये विलाय ॥४॥
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उक्त पदों द्वारा जनगोपाल को उपदेश देकर बादशाह के पास चले, तब जनगोपाल भी दादूजी के साथ चले, अब वे रह भी कैसे सकते थे ? उन्होंने दादूजी रूप परम पदार्थ प्राप्त कर लिया था । फिर दादूजी शिष्यों के सहित बादशाह के यहां पहुँचे तब चौबदार ने दादूजी की आने की सूचना बादशाह को दी ।
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बादशाह सुनकर सामने आया और कोई सवारी नहीं देखकर बीरबल को कहा - तुम तो बड़े बुद्धिमान् हो फिर भी स्वामीजी को पैदल ही लाये । किसी सवारी पर बैठाकर लाना था । बीरबल ने कहा - सवारी सभी प्रकार की ले गया था किन्तु आपने स्वीकार नहीं की, पैदल आना ही उचित समझा था ।
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फिर दादूजी ने कहा - इसमें बीरबल क्या करे ? हमारे ही मन में जीवों पर दया करने का भाव रहता है । साधु लोग सबको अपने समान ही समझते हैं । किसी को भी दुःख देना नहीं चाहते हैं -
"ज्यौं आपै दैखे आपको, यूं जे दूसर होय ।
तो दादू दूसर नही,दुःख न पावे कोय ॥"
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फिर दादूजी को उच्चासन पर बैठाकर जिज्ञासा पूर्वक सामने बैठ गये और कहा - आपके हिन्दुओं में औंकार की बड़ी महिमा गाते हैं और ॐ का चिन्तन भी करते हैं अतः ॐ के विषय में आपका क्या विचार है सो मुझे बताने की कृपा करें ?
(क्रमशः)

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