शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

*= ओंकार परिचय =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= २३ वां विन्दु दिन ५ =*
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*= ओंकार परिचय =*
अकबर का उक्त प्रश्न सुनकर दादूजी ने कहा -
"आदि शब्द ओंकार है, बौले सब घट मांहिं ।
दादू माया विस्तरी, परम तत्त्व यह नांहिं ॥"
ॐकार परमात्मा का नाम है और सब शरीरों में नाभि प्रदेश के ऊपर अनाहत ध्वनि रूप से रहता है और शब्द सृष्टि का आदि शब्द भी है । सबसे प्रथम ॐ ही ब्रह्मा के कंठ को भेदन करके निकला था किंतु ये नाम रूप भी सब माया के ही विस्तार हैं, यह परम तत्त्व नहीं है ।
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परम तत्त्व तो ओंकार का लक्ष्य अर्थ परब्रह्म ही है और प्रकृति रूप ओंकार से ही सब सृष्टि होती है -
"ओंकार से सब हुआ, पंच तत्त्व आकार ।
पंच तत्त्व से घट भया, बहु विध सब संसार ॥
दादू घट तैं ऊपजे, मैं तैं वर्ण विकार ॥"
चारों वेदों का सूक्ष्म स्वरूप भी ॐकार ही है । ओंकार का वाच्य अर्थ ईश्वर है, लक्ष्य अर्थ परब्रह्म है । यही ओंकार का सूक्ष्म और संक्षिप्त परिचय है ।
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*= अकबर को साक्षात्कार =*
फिर अकबर ने कहा - ऐसा उपदेश कीजिये जिससे गुप्त निधिरूप परब्रह्म मुझे भासने लगे । दादूजी ने कहा - परब्रह्म का साक्षात्कार निर्द्वन्द्व स्थिति प्राप्त होने पर होता है । जो निर्द्वन्द्व स्थिति को प्राप्त हुये हैं, उनको परब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है । ऐसा कहकर दादूजी ने अपनी योगशक्ति से अकबर को निर्द्वन्द्व स्थिति में लाकर एक क्षण भर में आत्मरूप से परब्रह्म का साक्षात्कार करा दिया, उससे उस सबन्धी सब संशय अकबर के नष्ट हो गये ।
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उस अद्भुत परमानन्द का अनुभव करके
अकबर ने भी कहा - मैंने वस्तु प्राप्त कर ली है -
"तब स्वामी संशय सब खोले, पाई वस्तु अकबर बोले ।"
जनगोपाल विश्राम ६॥१॥
फिर अकबर ने कहा - यह परमानन्द रूप स्थिति अति विलक्षण है किन्तु यह स्थिति मन में सर्वदा बनी रहे, इसका क्या उपाय है ? वह कृपा करके कहैं । मेरे समझ में ऐसा ही आता है कि साधन के द्वारा कोई भी स्थिति गुप्त नहीं रह सकती है । अर्थात् साधन से सब कुछ होता है । अतः आप कृपा करके उक्त स्थिति के स्थिर रखने का उपाय मेरे निमित्त से बताकर सभी सांसारिक प्राणियों को प्रभु प्राप्ति के साधन-मार्ग में लाने का अनुग्रह अवश्य करें ।
(क्रमशः)

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