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॥ श्री दादूदयालवे नम:॥
३५५. परिचय । पंजाबी त्रिताल ~
अब हम राम सनेही पाया, अगम अनहद सौं चित लाया ॥ टेक ॥
तन मन आतम ताकों दीन्हा, तब हरि हम अपना कर लीन्हा ।
वाणी विमल पँच परानां, पहिली शीश मिले भगवानां ॥ १ ॥
जीवत जन्म सुफल कर लीन्हा, पहली चेते तिन भल कीन्हा ।
अवसर आपा ठौर लगावा, दादू जीवित ले पहुँचावा ॥ २ ॥
इति राग सूहा सम्पूर्णः ॥ २२ ॥ पद २ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव साक्षात्कार सम्बन्धी विचार कह रहे हैं कि हे संतों ! जब से हमने अनहद शब्द में चित्त की वृत्ति लगाई है, तभी से हमारे स्नेही राम को हमने पा लिया है । प्रथम हमने उसके तन - मन आदि सर्वस्व अर्पण किया है, तभी वह हरि हमको आत्म - स्वरूप से प्राप्त हुए हैं । जिन्होंने अपनी वाणी, पँच इन्द्रियों, मन तथा प्राणों को निर्मल बनाकर भगवान् को अपना सर्वस्व अर्पण किया है, उन्होंने जीवित अवस्था में ही अपना जन्म सफल बना लिया है । जो पहली बाल्यावस्था में ही ध्रुव जी, दादू दयाल महाराज आदि की भाँति कर्त्तव्य - परायण हो गये हैं, उन्होंने ही इस संसार में अच्छा काम किया है । क्योंकि ठीक समय जीवित अवस्था में अपने अनात्म - अहंकार रूप सिर को परमेश्वर के अर्पण करके विचार द्वारा अपने आत्मा को मिथ्या संसार की आसक्ति से हटा कर सत्य - स्वरूप परब्रह्म के स्वरूप में स्थिर कर लिया है, उन्होंने ही अपने मानव - जन्म को सार्थक बनाया है ।
इति राग सूहा टीका सहित सम्पूर्णः ॥ २२ ॥ पद २ ॥
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